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________________ साध्वीरत्न पुष्पवती अभिनन्दन ग्रन्थ संसार के जितने भी महापुरुष/ऋषि/मुनि/मनीषी/संयमी, जो कि हमारे वंदनोय हैं; जिन पर हमें बड़ा गौरव है; जिनके अद्भुत त्याग-तप एवं आदर्श जीवन पर नाज है हमें; जिनकी दुहाई देते हम थकते नहीं, जिन्हें हम या हमारी संस्कृति भूल नहीं सकती; वे सभी नारी की कुक्षि से ही जन्मे थे। हमारा प्राक् एवं प्राचीन इतिहास हमें नारी के महिमामय जीवन के प्रति संकेत करता है। हम देखें तो सही प्राचीन इतिहास को उठाकर । हमें वस्तु-स्थिति का ज्ञान हो जाएगा। नारी के महानतम जीवन का दर्शन हमें आद्य तीर्थंकर प्रभु ऋषभदेव की जन्म-दात्री माता मरुदेवा में होते हैं। प्रभु ऋषभदेव के द्वारा तीर्थ-स्थापना से पहले ही वे केवलज्ञान-केवलदर्शन के साथ मोक्ष/शिव गति को प्राप्त हो गई। नारी की महानता के लिए एवं आत्मोत्थान के बारे में इससे बड़ा और क्या प्रमाण हो सकता है ? __ऐसे संदर्भ में स्वतः ही प्रश्न उठ खड़ा होता है कि नारी को नरक का द्वार बताने वाली उक्ति का क्या हुआ? यथा (१) 'द्वारं किमेकं नरकस्य ? नारी'-शंकर प्रश्नोत्तरी-३ (२) 'स्त्रियो हि मूलं नरकस्य पुंसः'-अज्ञात कहाँ तो वह नरक का द्वार कहलायी और कहाँ वह मोक्षगति की प्रथम अधिकारी बन गयी? इन दोनों बातों में जमीन और आसमान सा विराट अन्तर रहा हुआ है। जब हमने नारी को भोग्या और भोगमयी स्थिति में ही देखा तो हमें वह निकृष्ट दिखाई दी और जब उसे सर्वोच्च शिखर पर बैठे देखा तो हमारा मस्तक नत हो गया श्रद्धाभाव से । जहाँ हम उसे नरक का द्वार बतला कर नारी का अपमान करते हैं, वहीं उसे उत्कृष्ट उपमा से उपमित कर उसका सम्मान भी कर देते हैं। यथा (१) 'यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवताः । यत्रतास्तु न पूज्यन्ते, सर्वास्तत्राफलाः क्रियाः ॥' -मनुस्मृति-३ (२) 'स्थितोऽसि योषितां गर्भे, ताभिरेवविवद्धितः । ___ अहो ! कृतघ्नता सूर्ख ! कथं ता एव निंदसि ?' (३) 'राधा-कृष्णः स भगवान्, न कृष्णो भगवान् स्वयम् ।' -पौराणिक वाक्य हर वस्तु के दो पहलू हैं। हर वस्तु नय-प्रमाण से युक्त है। प्रत्येक वस्तु अनेकांतवाद के संदर्भ में उभयात्मक या अनेकात्मक है । प्रत्येक वस्तु स्याद्वाद के सप्तभंगों में विभक्त होकर भी सत्यता एवं एकरूपता लिए हुए है। हमारा सोच जब किसी भी वस्तु, जड़ हो या चेतन एक पहलू को लेकर, एक नय को लेकर, एक अपनी दृष्टि को लेकर, अपनी ही परिभाषा में बँध जाता है तब हम सत्य और वस्तुस्थिति के दर्शन नहीं कर सकते हैं। २४६ | छठा खण्ड : नारी समाज के विकास में जैन साध्वियों का योगदान onal www.jaine
SR No.012024
Book TitleSadhviratna Pushpvati Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1997
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
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