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________________ साध्वीरत्न पुष्पवती अभिनन्दन ग्रन्थ HEROINpna -- ----- ----- - इस पर रानी मान गई कि यही इसकी सच्ची माँ है । और पुत्र उसे सौंप दिया। जब रानी ने यह निर्णय दिया तब रानी की कृक्षि में एक पुत्र रत्न था । उसके जन्म लेने पर उसका नाम सुमति रखा। क्योंकि निर्णय करते हुए रानी की सुमति जागृत हुई । वह पुत्र बड़ा होकर सुमतिनाथ तीर्थंकर कहलाया। प्रस्तुत भजन में यह सारा वर्णन संक्षिप्त में दिया गया है । इनका स्वर्गवास १८८९ फाल्गून कृष्णा अष्टमी को हुआ । उन्नीसवीं सदी के आचार्यों में जयाचार्य का नाम भी बड़ा महत्वपूर्ण है। इन्होंने ७ आगमों पर राजस्थानी में टीकाएँ लिखीं। जो एक महत्वपूर्ण कार्य है। इन्होंने और भी अनेक ग्रन्थों की रचना की है-जयाचार्य पर तेरापंथ सम्प्रदाय के मुनियों ने विस्तृत साहित्य लिखा है। प्रभावक आचार्य परंपरा में पूज्य श्री घासीलाल जी म० सा० का नाम सदा ही हीर कणी की तरह दमकता रहेगा । इनका १६८५ में जशवन्तगढ़ में जन्म हुआ। इनके दीक्षा गुरु पूज्य आचार्य श्री जवाहरलाल जी म० हैं। इन्होंने स्थानकवासी जैनधर्म मान्य बत्तीस आगमों पर संस्कृत टीकाएँ लिख कर साहित्य जगत की इतनी बड़ी सेवा की है जो अप्रतिम है। कतिपय आगमों पर टीकाएँ तो अनेक आचार्यों ने लिखी किंतु ३२ आगमों पर प्रांजल संस्कृत भाषा में टीका लिख देना सामान्य कार्य नहीं है। इन्होंने टीका ग्रन्थों के अलावा कई मौलिक ग्रन्थ भी लिखे हैं। कई वर्षों तक ये सरसपुर, (अहमदाबाद) में स्थिर रहे, वहीं ठहर कर साहित्य सेवा की और वहीं स्वर्गवास भी हुआ। राजस्थान में मध्यकाल में शताधिक प्रभावक जैन आचार्य हुए हैं। जैनधर्म के जितने संप्रदाय यहाँ प्रचलित हैं सभी के इतिहास में ऐसे गौरवशाली सत्पुरुषों का, धर्मधुरीण आचार्यों का सप्रमाण विस्तृत विवेचन मिलता है । आवश्यकता है उन काल गभिल महापुरुषों के इतिवृत्त को खोज निकालने की। 先后 1. मानजी स्वामी कृत गुरुगुण अ० गु० अभिनन्दन ग्रन्थ परिशिष्ट । राजस्थान के मध्यकालीन प्रभावक जैन आचार्य : सोमाम्य मुनि "कुमुद | २१७ WInterSEHirationa www.la a.saas....... ..
SR No.012024
Book TitleSadhviratna Pushpvati Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1997
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
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