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________________ साध्वीरत्न पुष्पवती अभिनन्दन ग्रन्थ । DI :::: .. ये जैन सूत्रों के विद्वान कवि थे । ये तेरापंथ सम्प्रदाय के संस्थापक हैं । उन्नीसवीं सदी के महानतम संत रत्नों में पूज्य श्री रोड़ जी स्वामी का नाम बहुत ऊँचा है । इनके जन्म की निश्चत तिथि तो कहीं मिली नहीं । हाँ, जन्म सं० १८०४ का होना सम्भव है । इनका जन्म स्थान देपर गाँव है । यह गाँव नाथद्वारा और माहोली के मार्ग पर स्थित है । ओसवाल लोढ़ा गोत्र है । राजीबाई और डूंगर जी माता-पिता हैं । सं० १८२४ में हीर जी मुनि के पास दीक्षित हुए। ये घोर तपस्वी थे। प्रति माह दो अठाई तप, वर्ष में दो भासखमण तप और बेले बेले पारणा किया करते थे। रायपुर कैलाशपुरी सनवाड़ आदि स्थानों पर अज्ञानी और शैतान व्यक्तियों ने इन्हें कई कष्ट दिये किंतु इन्होंने परम समता भाव से सहा । कई जगह अपराधियों को राज्याधिकारियों ने पकड़ा भी और दंडित करना चाहा किंतु इन्होंने उन्हें मुक्त कर देने को अनशन तक कर दिया। उदयपुर में हाथी और सांड के द्वारा ही आहार लेने की प्रतिज्ञाा, जिसे जैन परिभाषा में अभिग्रह कहा जाता है, स्वीकार किया। आश्चर्य कि वे अभिग्रह सफल हुए। हाथी ने अपनी सुंड से मुनि जी को मोदक दिया और सांड ने अपने सींग से गुड़ अटका कर मुनि के सामने प्रस्तुत किया। यह वृत्तान्त भारत में मुख्यतया जैन समाज में बहुत प्रसिद्ध है। संवत् १८६१ में स्वामी जी का उदयपुर में स्वर्गवास हुआ । इनके साथ अनेक चमत्कारिक घटनाएँ भी जुड़ी हुई हैं। इन्हीं के सुशिष्य हुए हैं पूज्य नृसिंहदास जी म० । ये खत्रीवंशीय गुलाबचन्दजी एवं गुलाबबाई की संतान थे। सरदारगढ में इनको पृ० रोड जी स्वामी मिले और उनसे प्रतिबोधित होकर संयम पथ पर बढ़े । इन्होंने २१ - २३ और माह भर के अनेक तप किये। ये बहुत अच्छे कवि भी थे। महावीर रोतवन, सुमति नाथ को तवन, श्रीमती सती आख्यान आदि आपकी कृतियां मेवाड़ शास्त्र भंडार में हैं । सुमति नाथ स्तवन में १३ गाथा हैं। इसमें संक्षिप्त में एक घटना भी दी है। दो माताओं के बीच एक पुत्र को लेकर झगड़ा था। दोनों पुत्र को अपना बता रही थीं। किसी से न्याय नहीं हो सका । यहाँ तक कि राजा से भी नहीं। तो रानी ने इस विवाद को सलझाया। या। रानी ने कहा-बच्चे के दो टुकड़े कर आधा-आधा बाँट दिया जाए। इस पर वह माता जो असली नहीं थी इस निर्णय पर सहमत हो गई, वह तो चाहती यही थी कि मैं पुत्रहीन हूँ तो यह भी वैसी ही हो जाए किंतु द्वितीय माता ने इस निर्णय का विरोध किया । उसने कहा-यह पुत्र उसे दे दो। पर मारो मत । 1. बड़ी पट्टावली 2. नृसिंहदास जी म० कृत ढाल अं० गु० अ० ग्रन्थ० परि० । 3. सिंहदास जी म० कृत ढाल अं० गु० अ० ग्रन्थ० परि० । 4. रोड़ जी स्वामी ढाल (नृसिंह दास जी म० सा०) अं० गु० अ० ग्रन्थ० परि० । २१६ | पंचम खण्ड : सांस्कृतिक-सम्पदा www.jainel bei . . . ++ ++++
SR No.012024
Book TitleSadhviratna Pushpvati Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1997
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
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