SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 53
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ स्व० श्री शेषमल जी बागमार श्रीमान् शेषमल जी बागमार बहुत ही धर्मपरायण सरलमना एक सुश्रावक थे। आपश्री के पज्य पिताश्री का नाम गेवरचन्द जी और माता का नाम पतासीबाई था। दोनों ही धर्म निष्ठ थे। मातापिता के धार्मिक संस्कार शेषमलजी में पूर्ण रूप से साकार हुए। शेषमलजी के चांदमलजी और सूरजमल जी ये दो लघु भ्राता थे । शेषमलजी के धरमीचन्दजी, सुभाषचन्दजी, महावीरचन्दजी, महेन्द्रकुमार जी और रतनचन्द जी पाँच सुपुत्र हैं। इन पांचों भाइयों में पाण्डवों की तरह परस्पर स्नेह और सद्भावकी गंगा बहती है। आपके पूर्वज राजस्थान से व्यवसाय हेतु कर्नाटक में पहले गजेन्द्रगढ़ में काफी समय तक रहे। उसके पश्चात् सिंधतुर और सोरापुर में व्यवसाय हेतु रहने लगे हैं। आपकी दोनों स्थानों पर कपड़े की दुकानें हैं । आप पांचों भाइयों में अच्छे धार्मिक संस्कार हैं। परम श्रद्रय उपाध्यायश्री और उपाचार्यश्री के प्रति आप में गहरी निष्ठा है। प्रस्तुत ग्रन्थ के प्रकाशन में आपने अपना उदार अनुदान प्रदान कर अपनी हार्दिक भक्ति को मृत हप प्रदान किया है। आपके फर्म का नाम है-एवन्त साड़ी सेन्टर, मेन रोड, सिन्धनूर (कर्नाटक) श्रीमान् इन्द्रचन्द जी मेहता श्रीमान इन्दरचन्दजी मा० मेहता राजस्थान में सन्त सम्मेलन नगरी सादड़ी के निवासी हैं। जहां पर यशस्वी सम्मेलन हुआ और श्रमणसंघ का गठन हुआ । आपका व्यवसाय मद्रास में है। आपके फर्म का नाम है-एच० चन्दनमल, ११६ नैनप्पानाईक स्ट्रीट मद्रास (तमिलनाडु) श्रीमान् इन्दरचन्दजी सा० धर्मप्रेमी परम गुरु भक्त सुश्रावक हैं । आपके जीवन में युवकोचित तेजस्विता है । उदारता, स्नेह और सद्भावनाएं ऐसे सद्गुण हैं जिसके कारण आप जन-जनप्रिय हैं, अनेक संस्थाओं के सम्माननीय पदाधिकारी हैं। और जिस संस्था को आपने अपने हाथ में लिया वह संस्था आर्थिक दृष्टि से पूर्ण समृद्ध बन गई । क्योंकि व्यक्ति के कार्य करने की क्षमता ही संस्थाओं में प्राणों का संचार करती है। आपने मद्रास में उपाध्याय श्री के वर्षावास में तन-मन से सेवा की थी। आपका प्रस्तुतग्रन्थ के प्रकाशन में भी अनुदान प्राप्त हुआ है। यह आपकी धर्मनिष्ठा को उद्योतित करता है। ( १४ ) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012024
Book TitleSadhviratna Pushpvati Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1997
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy