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________________ साध्वीरत्न पुष्पवती अभिनन्दन ग्रन्थ (१३) प्रभाचन्द्र-माणिक्यनन्दी के विद्याशिष्यों में प्रभाचन्द्र प्रमुख रहे । ये माणिक्यनन्दी ) परीक्षामुख नामक सूत्र ग्रन्थ के कुशल टीकाकार हैं। दर्शन साहित्य के अतिरिक्त वे सिद्धान्त के भी विद्वान थे । इन्हें राजा भोज के द्वारा प्रतिष्ठा मिली थी। इन्होंने विशाल दार्शनिक ग्रन्थों की रचना के साथ-साथ अनेक ग्रन्थों की रचना की। इनके द्वारा रचित ग्रन्थों के नाम इस प्रकार हैं : (१) प्रमेय कमलमार्तण्ड --दर्शन ग्रन्थ है जो माणिक्यनन्दी के परीक्षामुख की टीका है। यह ग्रन्थ राजा भोज के राजकाल में लिखा गया । (२) न्याय कुमुदचन्द्र न्याय विषयक ग्रन्थ है। (३) आराधना कथा कोण गद्य ग्रन्थ है। (४) पुष्पदन्त के महापुराण पर टिप्पण । (५) समाधितन्त्र टीका-ये सब ग्रन्थ राजा जयसिंह के समय में लिखे गये। (६) प्रवचन सरोज भास्कर । (७) पंचास्तिकाय प्रदीप । (८) आत्मानुशासन तिलक। () क्रियाकलाप टीका। (१०) रत्नकरण्ड टीका। (११) बृहत् स्वयंभू स्तोत्र टीका। (१२) शब्दाम्भोज टीका-ये सब कब और किसके समय में लिखे गये, कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है। इन्होंने देवनन्दी की तत्त्वार्थवृत्ति के विषम पदों की एक विवरणात्मक टिप्पणी भी लिखी है। इनका समय ११वीं सदी का उत्तरार्द्ध एवं १२वीं सदी का पूर्वार्द्ध ठहरता है। ___ इनके नाम से अष्ट पाहुड पंजिका, मूलाचार टीका, आराधना टीका आदि ग्रंथों का भी उल्लेख मिलता है, जो उपलब्ध नहीं हैं।' (१४) आशाधर-पं० आशाधर संस्कृत साहित्य के अपारदर्शी विद्वान् थे । ये मांडलगढ़ के मूल निवासी थे किन्तु मेवाड़ पर मुसलमान बादशाह शहाबुद्दीन गोरी के आक्रमणों से त्रस्त होकर मालवा की राजधानी धारानगरी में स्वयं अपनी एवं परिवार की रक्षा के निमित्त अन्य लोगों के साथ आकर बस गये थे । धारा नगरी उस समय साहित्य एवं संस्कृति का केन्द्र थी, इसीलिए इन्होंने भी वही व्याकरण एवं न्यायशास्त्र का गम्भीर अध्ययन किया। धारा नगरी से साहित्य एवं संस्कृति का परिज्ञान एवं नलकच्छपुर (वर्तमान नालछा) में साधु जीवन प्राप्त हुआ था। नालछा का नेमिनाथ चैत्यालय उनकी साहित्यिक गतिविधियों का केन्द्र बन गया। वे लगभग ३५ वर्ष तक नालछा में ही रहे और वहीं एकनिष्ठा से साहित्य सर्जन करते रहे ।। पंडित आशाधर बहुश्रुत और बहमुखी प्रतिभा के विद्वान् हुए। काव्य, अलंकार, कोश, दर्शन, धर्म और वैद्यक आदि अनेक विषयों पर उन्होंने ग्रंथ लिखे थे। वे धर्म के बड़े उदार थे। इनके द्वारा रचित ग्रंथों का विवरण इस प्रकार है : १. सागार धर्मामृत-सप्त व्यसनों के अतिचारों का वर्णन, श्रावक की दिनचर्या और साधक की समाधि व्यवस्था आदि इसके वर्ण्य विषय हैं। यह ग्रंथ लगभग ५०० संस्कृत पद्यों में पूर्ण हुआ है iiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiii H E RE: 1. (अ) गुरु गोपालदास वरैया स्मृति ग्रन्थ के आधार पर, पृ. 548 और आगे (ब) संस्कृत साहित्य का इतिहास, गैरोला, पृ० 355 2. अनेकांत वर्ष 17, किरण 2, जून 1964, पृ० 67 3. संस्कृत साहित्य का इतिहास, गैरोला, पृ० 347 4. संस्कृत साहित्य का इतिहास, गैरोला, पृ० 346 HAPA प्राचीन मालवा के जैन सन्त और उनकी रचनाएँ : डॉ० तेजसिंह गौड़ | १४३ +
SR No.012024
Book TitleSadhviratna Pushpvati Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1997
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
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