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श्री आनन्दस्वरूप जैन, गुड़गांवा
कुछ व्यक्ति बाह्य दृष्टि से दीखने में बहुत सीधे-सादे होते हैं किन्तु उनका हृदय बहुत उदार, सरल और स्नेह से सराबोर होता है । वे सद्गुणों के आगार होते हैं और अपने सद्गुणों के कारण ही जन-जन के स्नेह के पात्र बन जाते हैं।
श्रीमान् लाला आनन्दस्वरूपजी जैन बहुत ही उदारमना सुश्रावक हैं। आपश्री के पूज्य पिताजी का नाम विश्वेशरदयालजी था और माताश्री का नाम मिश्रीदेवी था। माता-पिता के धार्मिक संस्कार सहज ही आपको प्राप्त हुए। उन संस्कारों को पल्लवित और पुष्पित करने का श्रेय है, आगम मर्मज्ञ महामनीषी धर्मोपदेष्टा श्री फूलचन्दजी म० 'पूफ्फभिक्खू' को। श्रद्धेय फूलचन्दजी म० की पारखी दृष्टि जब आप पर गिरी तो आपने इस रत्न को पहचाना। आप श्रद्धय गुरुदेव के चरणों में तन-मन-धन से हो गये । उनकी लम्बी विहार-यात्राओं में महीनों तक आप साथ रहे और वृद्धावस्था में जब पुफ्फभिक्खुजी म० रुग्ण हो गये तो आपने सच्चे श्रावक की तरह उनकी सेवा-सुश्रूषा की और उनका हार्दिक आशीर्वाद प्राप्त किया।
आप उदारमना महानुभाव है। आपका विश्वास विज्ञापन में नहीं, कार्य में है। आपकी धर्मपत्नी श्रीमती चन्द्रकान्ता बहन भी धर्मपरायणा हैं । आपके सुनीलकुमार, प्रवीणकुमार, नवीनकुमार-ये तीन पुत्र हैं और शशिबालाजी, निर्मला ये दो सुपुत्रियाँ हैं ।
नवकार आयरन स्टोर, सदर बाजार गुड़गांवा में आपकी फर्म है।
परम श्रद्धय गुरुदेव उपाध्याय श्री पुष्करमुनिजी म. सा० व उपाचार्य श्री देवेन्द्रमुनिजी म० के प्रति आपकी निष्ठा है । प्रस्तुत ग्रन्थ के प्रकाशन में आपका हार्दिक अनुदान प्राप्त हुआ है। एतदर्थ हार्दिक धन्यवाद ।
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