SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 323
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ nidi n ammna साध्वीरत्नपुष्पवती अभिनन्दन ग्रन्थ गत विवेचना के साथ-साथ उससे सम्बन्धित सूक्ष्म दान और ऐसी सेवा का क्या अर्थ है ? [पृष्ठ २०] वृत्तियों का तुलनात्मक विश्लेषण भी प्रस्तुत किया (ii) बहुधा देखा जाता है कि लोग अपने प्रेमाहै । जिससे सम्बन्धित जीवन मूल्यों को गहराई के स्पद प्रभु के लिए आँसू बहाते हैं, अपने आराध्य के साथ व्यापक फलक पर समझने में मदद मिली है। सम्मुख बैठकर विलाप करते हैं, याचना करते हैं (२) साध्वीश्री अपने प्रवचनों में धर्म को कि उन्हें शरीर के कारागार से सुक्त करके अपने नैतिक मूल्य और सामाजिक शक्ति के रूप में प्रस्तुत अभीष्ट प्रेमी अर्थात प्रेमास्पद प्रभु के साथ एकरूप करने में विशेष सचेष्ट दिखाई पड़ती हैं। उनकी कर दिया जाय। इस प्रकार की उनकी व्याकूलता दृष्टि में अहिंसा, सत्य, आदि जीवन मूल्य अचल देखकर उनके भक्त या प्रेमी होने का अनुमान लगा नहीं हैं। वे सामाजिक सम्बन्धों का सरोकार पाकर लिया जाता है। लेकिन वे ही व्यक्ति जब अपने आस-पास के दुखी और क्लान्त मनुष्यों को देखकर सचल और गतिमान हो उठते हैं। इसी बिन्दु से मौन और उदासीन रहते हैं, किसी पीड़ित को देखधर्म समाजीकरण की प्रक्रिया अथवा सामुदागि कर दया, संवेदना अथवा करुणा से द्रवित नहीं होते, चेतना के विकास का माध्यम बनता है। तो स्पष्ट ज्ञात होता है कि वे परमात्मा के भक्त या भोगलिप्सा और संकुचित स्वार्थवृत्ति के कारण प्रेमी नहीं, अपितु प्रेम का प्रदर्शन करने वाले ढोंगी व्यक्ति अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह हैं। प्रेमतत्व से ओतप्रोत व्यक्ति का हृदय करुणा, आदि जीवन मूल्यों का सही आचरण नहीं कर दया, क्षमा आदि से अवश्य ही सराबोर होता है। पाता। जब वह उन्हें ब्राह्य प्रदर्शन, दिखावा और पृष्ठ ३८ नामवरी के लिए ओढ़ने लगता है तब धर्म आचरण (iii) सत्य का सर्वागीण स्वरूप समोर का विषय न बनकर प्रदर्शन बन जाता है। आज लिए दृष्टि का शुद्ध, स्पष्ट और सर्वांगीण होना व्यवहार में ऐसा देखा जाता है कि जीवन मूल्यों का बहत आवश्यक है। जिसकी दृष्टि पर अज्ञान और तथाकथित धार्मिक लोगों ने बाजार मूल्य बना मोह का काला पर्दा पडा हआ है, जो साधना के लिया है। वे सिक्के या मुद्रा के रूप में उससे कुछ लिए वेष पहनकर तो सुसज्जित हो गया है, लेकिन न कछ खरीदना चाहते हैं । ऐसे लोगों पर साध्वीजी जिसे यह पता नहीं है कि सत्य का आचरण क्यों ने जगह-जगह कठोर प्रहार किया है। कुछ उदा- करना चाहिए ? सत्य का स्वरूप क्या है ? सत्य से हरण देखिये-- जीवन को क्या लाभ है ? असत्य से क्या हानि है ? (i) मान लीजिए, एक व्यक्ति धनाढ्य है, वह ऐसा व्यक्ति यदि भय से या दबाव से या इसी तरह धान करता है. उसने यात्रियों के लिए धर्मशाला प्रलोभन से या स्वार्थ से सत्य बोल भी देता है तो बनवा दी है, गरीबों की सेवा के लिए उसने कोई उससे वह कर्मबन्धन से मुक्त नहीं हो सकता, सत्य संस्था खोल दी है किन्तु दूसरी ओर से वह शोषण उसके लिए कर्म काटने का साधन नहीं बनता । का कुचक्र भी चला रहा है, अपने नौकरों से उनके अगर सत्य बोलूँगा तो मालिक तरकको कर देगा, सामर्थ्य से अधिक काम लेता है, जरा से देर से आने या इनाम देगा, और असत्य बोलूंगा तो मालिक या पर वेतन काट लेता है। तो ये बातें उस सेवा और पिता नाराज हो जायेंगे, अथवा समाज में मेरी बददान के साथ कैसे मेल खा सकती हैं ? यह तो ऐसा नामी होगी, ऐसा सोचकर जो सत्य बोलता है, वह ही है, जैसे कोई एक बोतल रक्त निकालकर बदले सत्य चारित्र का अंग नहीं है, और न इससे आत्ममें एक दो बूंदें रक्त दे दे, या सौ-दो सौ घाव करके विशुद्धि ही हो सकती है, ऐसा भगवान् महावीर का एक दो घावों पर मरहम पट्टी कर दे। अतः ऐसे स्पष्ट आघाष है । [पृष्ठ १०१ २५२ तृतीय खण्ड : कृतित्व दर्शन s www.jainell
SR No.012024
Book TitleSadhviratna Pushpvati Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1997
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy