SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 315
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ साध्वी रत्न पुष्पवती अभिनन्दन ग्रन्थ कवयित्री द्वारा चार चरित्र काव्य रचे गये हैं, जिनमें दिव्यात्माओं के आदर्श जीवन की क्रमिक यात्रा व्यंजित की गई है तथा प्राणी के सम्मुख एक आदर्श जीवन यात्रा को प्रस्तुत कर उन्मार्ग से सन्मार्ग की ओर प्रवृत्त होने की प्रेरणा दी गई है । शब्द शक्तियों का शुद्ध प्रयोग, अलंकारों का सहज उपयोग तथा प्रभावक भाषा-शैली का व्यवहार इन काव्यों में शक्ति पैदा करता है । नायक के चरित्र - चित्रण में साहस, शक्ति का अदम्य भण्डार मुखर हो उठा है जो अशुभ से जूझकर शुभोपलब्धि में सहायक सिद्ध होता है। मनीषी महिलामणि श्री प्रभावती जी ने इन सत्यों को सफलतापूर्वक शब्दायित किया है । प्रभावती शतक चरित काव्यों के अतिरिक्त कवयित्री ने प्रभावती शतक नामक काव्य की भी रचना की है । संख्यापरक काव्यरूपों में कुलक, अष्टक आदि की परम्परा में शतक काव्य रचने की परिपाटी अर्वा - चीन नहीं है । संस्कृत वाङ्मय में शतक काव्यों की एक सुदूर परम्परा रही है, वही हिन्दी में भी अवतरित हुई और नीति, उपदेश तथा संदेश विष यक मन्तव्यों के लिए इस काव्यरूप का व्यवहार किया जाता रहा है । हिन्दी की शतक परम्परा में प्रस्तुत काव्य अपना महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है । शतक काव्य में किसी भी छन्द के शत अथवा इससे अधिक का होना शतक के लिए आवश्यक है । हिन्दी में उद्धव शतक का महत्त्वपूर्ण स्थान है । जैन हिन्दी कवियों ने अनेक शतक काव्य रचे हैं, जिनमें शृंगार, नीति तथा उपदेश विषयों को प्रधा ता रही है । प्रभावती शतक इसी परम्परा में एक बेजोड़ काव्य है । इसमें महासती द्वारा अपने जागतिक तथा विरागी जीवन की प्रमुख जीवंत घटनाओं को व्यंजित किया गया है। महाकवि बनारसीदास की भाँति ‘अर्द्ध कथानक' जैसा ग्रन्थ रचा है शतक के रूप में कवयित्री ने 'प्रभावती शतक' । इसे आत्म-कथा भी कहा जा सकता है, पर वैसी प्रवृत्ति हो, पर शक्ति नहीं है । २४४ | तृतीय खण्ड : कृतित्त्व दर्शन जन्मभूमि, परिवार, शिशुता का सौष्ठव, श्वसुरालय की देहली सब--सुख, एक दुःख, पुत्र-पुत्री की दीक्षा स्वयं की दीक्षा, जीवनचर्या, चालीस चतुर्मास, शिष्याओं के नाम, उपकारिणी वाणी, स्वर्गवास के समय, सेवाभावी सतियाँ प्रभावती जी के पुत्र-मुनि, स्थायी स्मृतिपूर्वक शतक १०६ दोहा आदि छन्दों के द्वारा सम्पन्न किया गया है। भाषा बोलचाल की सरल तथा शैली प्रवाहपूर्ण है । मानवी गुणों का उद्घाटन प्रस्तुत कृति में सहज में ही हो जाता है । [ संगीत प्रभा कवयित्री ने भजन भी रचे हैं। प्रस्तुत कृति में भजनों का ही प्राधान्य है । संकलन में ६६ भजन हैं जिनमें तीर्थंकरों की वन्दना, बारह भावना तथा धर्म के दस लक्षण प्रमुख हैं । विविध राग-रागिनियों में निबद्ध भजनों का यह संकलन महिलामण्डल के गाने - दुहराने के लिए परम उपयोगी है । काव्य के माध्यम से जो बात प्रभावकारी रूप में दूसरों के सामने प्रस्तुत की जा सकती है उतनी गद्य में नहीं । भजनों के द्वारा किसी भी भाष्य की आवश्यकता नहीं रह जाती । उनमें व्यंजित आध्यात्मिकता सहज में ही आत्मसात् हो जाती है । कवयित्री ने तत्कालीन लोक में प्रचलित संगायन की तर्जों को अपनाया है और उसी पर आधारित सारे भजन रच डाले हैं जो जैन भक्तों में श्रद्धापूर्वक गाये दुहराये जाते हैं । प्रभा-पीयूष घट यह कवयित्री का दूसरा भजनों का संकलन है, जिसमें साठ भजनों की रचना की गई है। सभी भजन वजनदार हैं और धार्मिकता से सम्पन्न हैं । प्रत्येक भजन में कोई न कोई संदेश दिया गया है । प्रवचन में जो स्थान दृष्टान्त का है, वही काव्य में भजन का है । भजन अपने आप में उपदेश होते हैं । उन्हें स्वयं गाया जाए और अपनाया जाए । वे स्वयं उपदेश हैं और स्वयं ही उपदेशक भी । नाना विषयों पर अपने जीवन के अनुभवों का निचोड़ इसमें कवयित्री ने व्यंजित किया है । विविध राग. www.jainelibr
SR No.012024
Book TitleSadhviratna Pushpvati Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1997
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy