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________________ साध्वारत्न पुष्पवता आभनन्दन ग्रन्थ शैली में व्यक्त किया है कि पाठक का मन एक बार को विरागता मे डूब जाता है । काव्य का लक्ष्य यहीं पर पूर्णता प्राप्त करता है । प्रस्तुत काव्य की रचना दोहा, चौपाई, छन्दों में हुइ है जिसे कवयित्री ने राधेश्याम की तर्ज पर व्यवस्थित किया है । सारे काव्य में प्रसाद गुण की रसधार प्रवाहित हो उठी है । काव्य में सरसता, सरलता और सुबोधता का अपूर्व संगम मुखर हो उठा है। विवेच्य काव्य में अनुप्रास, उपमा तथा रूपक अलंकारों का सहज प्रयोग द्रष्टव्य है । पूरे काव्य में वैराग्य रस की अजस्र धारा प्रवाहित है, जिसमें आज के जीवन की व्याकुलता और त्रासपूर्णता का सहज समाधान शब्दायित है । प्रस्तुत काव्य वैराग्य के साथ-साथ नैतिक काव्य की कोटि में सहज रूप से समाहत हो जाता है । सुधा-सिन्धु कल्पतरु कवयित्री का कल्पतरु नामक चरित्र काव्य वस्तुतः एक प्रौढ़ रचना है । इसमें कवयित्री का जीवन्त अनुभव तथा अन्तरंग अभिव्यक्त हुआ है । कथा कंचनपुर के राजघराने पर आधारित है। राजकुमारी पद्मा और नन्दग्राम का पद्मसेन के दिव्य चरित्र का लेखा-जोखा प्रस्तुत काव्य में व्यंजित है । कथावृत्त सुव्यवस्थित और किसी भी प्रबन्ध काव्य की पात्रता रखता है तथापि कवयित्री ने इसे एक छोटे से चरित्रकाव्य में ही निबद्ध कर दिया है । रचना की भाषा-शैली वस्तुतः प्रवाहमयी है, प्रसादांत है । काव्य में स्थान-स्थान पर अलंकारों का सुन्दर प्रयोग तथा लोकोक्तियों का सार्थ प्रयोग कथन कमनीयता उत्पन्न कर उठा है। इस काव्य में नायक के गुणों की प्रधानता रहती है सो विवेच्य काव्य में परिलक्षित है । पद्मसेन में शूरवीरता, उदारता, ब्रह्मचर्य आदि मानवी गुणों को उजागर किया गया है । शृंगार, वीर, करुण तथा अन्त में कथा का अवसान शान्तरस में हो जाता है । काव्य में त्याग की अमरता को सर्वोपरि सिद्ध किया है । नायक काम तथा अर्थ नामक पुरुषार्थों को हीन दृष्टि से देखता है और प्रवीनदृष्टि स्थिर रहती है. धर्म तथा मोक्ष पुरुषार्थ पर । यही भारतीय संस्कृति की देन है । प्रस्तुत काव्य में इसी उदात्तता का संचार प्रस्तुत किया गया है । कवयित्री अपने उद्देश्य में आशातीत सफलता प्राप्त करती है । महासती साध्वी प्रभावती जी महाराज द्वारा प्रणीत साहित्य और उसका शास्त्रीय मूल्यांकन | २४३ प्रस्तुत काव्य का कथानक पौराणिक है जिसका नायक है - सिन्धुकुमार । मनचली कन्या द्वारा अनैतिक आरोप लगाने के फलस्वरूप नायक को राज्यसे निष्कासित किया जाता है | नायक अपने आदर्श - वादी सम्पन्न चरित्र, वीरता तथा कर्त्तव्यपरायणता के बलबूते पर वह देश - देशान्तरों की यात्रा करता है और अपनी सूझ-बूझ से सुधाकुमारी राजकन्या से विवाह कर लेता है । अपनी नवविवाहिता को राजकुमारी बनाने के व्याज से वह घोर परिश्रम करता है और अनेक विघ्न-बाधाओं को पार करता हुआ अन्ततः सफलता अर्जित करता है । वह अपने पुरुषार्थ के बल पर विशाल राज्य का स्वामी वन जाता है । न्याय, नीति तथा सदाचारपूर्वक शासन करता हुआ एक आदर्श राजा का चरित्र प्रस्तुत करता है । में सहज ही व्यंजित की गई है । विचार और व्यंजना में कहीं कुछ भी थोपा हुआ नहीं है । प्रस्तुत काव्य में उपमा, रूपक, श्लेष तथा यमक आदि अलंकारों का यथायोग्य उपयोग किया गया है । इनके प्रयोग से अर्थ-व्यंजना में, उत्कर्ष में वर्द्धन हुआ है, किसी प्रकार का बोझ नहीं । भाषा की सुकुमारता और सरलता ने काव्य को मिठास से भर दिया है । दोहा तथा राधेश्यामी तर्ज पर लिखा गया काव्य जीवन्त ध्वन्यात्मकता से मुखर हो उठा है । जहाँ तक काव्यकला का प्रश्न है, प्रस्तुत काव्य उसका एक अनूठा उदाहरण । इसमें भाषा और शैली की दृष्टि से सरलता और सुबोधता का आद्यन्त प्रयोग हुआ है। इसमें लोक-नीति, धर्म तथा समाज मर्यादा आदि की प्रेरणा प्रस्तुत काव्य www.jain
SR No.012024
Book TitleSadhviratna Pushpvati Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1997
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
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