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________________ साध्वारत्न पुष्पवती अभिनन्दन ग्रन्थ पैरों से रौंदकर आगे बढ़ जाऊँ । पर ज्यों ही उसने कीचड़ में पर रखा, कीचड़ ने छपाक से कहा - तू मेरा अपमान कर रहा है पर गरीब का अपमान करना उचित नहीं । उसने उछलकर पथिक के चमचमाते हुए वस्त्रों को मलिन बना दिया । मैं सोचने लगी- दलित और पतित समझा जाने वाला कीचड़ भी जब अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करता है, जो जड़ है । तो इन्सान यदि अन्याय का प्रतिकार करे तो आश्चर्य क्या ? जिनमें चिन्तन का अभाव है, वे दूसरों से बहुत जल्दी प्रभावित हो जाते हैं। जरा से पानी की बूंदें गिरते ही सीमेन्ट की फर्श शीघ्र गीली हो जाती है पर ज्यों ही हवा चली नहीं कि सूख भी जल्दी ही जाती है । बिना गुणों के व्यक्ति की कद्र नहीं होती । गुलाव का पौधा अपने सुगन्धित पुष्प के कारण जन-जन का आकर्षण केन्द्र है | आम का वृक्ष अपने मधुर फलों के कारण जनता जनार्दन का आदर पाता है । नागरबेल अपने पत्ते के कारण ही लोकप्रिय है तो चन्दन का वृक्ष अपने काष्ठ के कारण ही जन-जन को प्रिय है | वैसे ही मानव की कद्र न रूप के कारण और न शारीरिक सौष्ठव के कारण बल्कि उसकी कद्र होती है सद्गुणों के कारण | श्रीकृष्ण रंग से काले थे, अष्टावक्र आठ स्थानों से टेढ़े थे, चाणक्य अत्यन्त कुरूप थे और महात्मा गांधी कृशकाय थे । सत्य और अहिंसा आदि गुणों के कारण ही आदरणीय बने । स्वतन्त्रता विकास के लिए आवश्यक है । स्वतन्त्रता स्वछन्दता न बन जाय इसके लिए उस पर नियन्त्रण भी आवश्यक है। शरीर में हाथ पैर, आँख-नाक ये सभी अंग स्वतन्त्र हैं तथापि मस्तिष्क का उन पर नियन्त्रण है । यदि मस्तिष्क का नियंत्रण न रहे तो व्यक्ति पागल की तरह कार्य करने लगेगा । 1] निम्न प्रकृति का व्यक्ति यदि उच्च स्थान पर भी पहुँच जाय फिर भी प्रकृति की विकृति के कारण वह अवनति की ओर ही कदम बढ़ायेगा । कल, नल और बल के कारण पानी ऊँचे स्थान पर पहुँचने पर भी उसकी गति अधोगामी ही रहती है । दिल को क्षुद्र नहीं विराट बनाओ, घड़ा नहीं दरिया बनाओ । घड़े का पानी ठण्डा भी होता है गरम भी होता है । जरा-सा रंग घड़े के पानी के रंगको परिवर्तित कर देता है किन्तु दरिया के पानी को प्रभावित करने की शक्ति किसी में भी नहीं । सर्दी, तूफान आदि का भी उसके पानी पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता । विराट व्यक्तित्व के धनी का मानस किसी बाह्य प्रभाव से प्रभावित नहीं होता । 1] डोर से सम्बन्धित पतंग अपना विकास करती है । उसे कोई खतरा नहीं होता । वह चाहे ऊँची-नीची-तिरछी किधर भी जाये, आकाश उसे शरण देता है, पवन उसे दुलराती है और पतंग निश्चित, निर्द्वन्द, ठुमक ठुमक कर नीले अनन्ताकाश में अठखेलियाँ करती रहती है । पर डोर से पतंग का सम्बन्ध विच्छेद हुआ नहीं कि वो सारी अनुकूलताएँ जो गगन ने, पवन ने, पतंग को दी थीं, विलुप्त हो जाती हैं प्रतिकुलताएँ बन जाती हैं और पतंग डगमगाती- डोलती न जाने किस अज्ञात को में जा गिरती है । सत्य है, जो स्वावलम्बी नहीं होते, दूसरों के अवलम्बन सम्बल पर आधार पर पैर पर फैलाते हैं; वे इसी प्रकार अवनति को प्राप्त करते हैं । 4] एक साधक को पुस्तक पढ़कर ज्ञान प्राप्त होता है तो दूसरे को गुरु के अनुग्रह से ज्ञान प्राप्त होता है । दोनों में वैसा ही अन्तर है जैसे एक व्यक्ति वर्तन में निकला हुआ दूध पीता है और दूसरा व्यक्ति सीधा ही गौ- स्तन से दुग्धपान करता है । जो सीधा ही गौ- स्तनों से मुख लगा दूध पीता है । उसे अधिक लाभ होता है जबकि पात्र में निकला हुआ चिन्तन के सूत्र : जीवनकी गहन अनुभूति । २२१ www.jaine
SR No.012024
Book TitleSadhviratna Pushpvati Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1997
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
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