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________________ ककक ककककककक ककककक ककककक तन के कककककक कककचन कडेकपद क चिन्तन के सूत्र : जीवन की गहन अनुभूति संकलन : दिनेशमुनि 6+C+O60666666666666666666666666666 000000000000064 nedeceas आज का जन-जीवन चाहे वह व्यक्ति, समाज और राष्ट्र का जीवन हो उसमें कुंठा, गुच्छ, निष्क्रियता के मेघ आच्छादित हो गए हैं । चिन्ताओं के बोझ से वह बोझिल हो गया है । उसकी तेजस्विता प्रायः क्षीण हो चली है । जीवन की कुण्ठा और तनाव के घने घेरे से बचने के लिए चिन्तकका सुदृढ़ प्रहरी होना आवश्यक है । युग की मूर्च्छा मिटाने के लिए चिन्तन का अमृत स्पर्श आज सर्वथा अपेक्षित है । चिंतन उगे- जगे बिना चिन्ता का परिहार नहीं होता । चिन्ता के परिहार बिना जीवन में स्फूर्ति और तेजस्विता का समागम सम्भव नहीं । सक्रिय और तेजस्वी जीवन ही वस्तुतः सार्थक जीवन है । चिन्तन की इस हिम-धवल रजत ज्योत्स्ना की छाया में ही व्यक्तित्व का शतदल कमल पुष्पित- पुलकित होता है । साध्वी रत्न श्री पुष्पवतीजी के चिन्तन सूत्र जीवन की गहन अनुभूतियों से जन्मे हैं । अनुभव के ज्योतिर्मय प्रदीप हैं। इन सूत्रों में जीवन-दर्शन की सहज छाप डालने में आप सिद्धहस्त हैं । वस्तुतः साध्वीश्री समकालीन मानस-मंथन की चित्रकार और प्रस्तुतकर्त्री हैं। आपश्री के चिन्तन सूत्र कुछ निश्चित आस्थाओं के इर्द-गिर्द घूमते हैं तथापि उनमें रागमयता का स्पर्श नहीं है । गूढ़ चिन्तन और सूक्ष्म विवेचन की अपनी विशिष्ट शैली में साध्वीश्री की प्रत्येक रचना अपने सीमित परिसर में अन्तर्ग्रथित और सम्पूर्ण है । भाषा स्वच्छ किन्तु संकेतपूर्ण है । आज के त्रास-संत्रास भरे जीवन के लिए साध्वीश्री के ये चिन्तन सूत्र निश्चय ही अमोघ दिव्य संजीवनी का काम करेंगे । आइए, हम सभी इस चिन्तन की चाँदनी आलोकित होवें । !] प्रत्येक व्यक्ति अपने आप को बृहस्पति का अवतार मानता है । वह अपने को बुद्धिमान और में दूसरे को बुद्ध समझता है फिर चाहे भले ही वह स्वयं बुद्ध क्यों न हो ? बुद्धिमान जिसे बुद्ध कहते हैं | पर विडम्बना यह है कि बुद्ध भी बुद्धिमान को बुद्ध मानता है । कितने ही व्यक्ति निराशा के स्वर में कहते हैं हम कार्य तो करना चाहते हैं पर सहयोग नहीं मिलता। मैं सोचती हूँ पहले योग होना चाहिए। Jain Education International हमारा मन वचन और काया का योग सबल है दूसरों का सहयोग सहज ही मिल जायेगा | योग साथ ही तो सहयोग व सुयोग रहा हुआ है। 0 वहिष्कार और परिष्कार ये दो शब्द है पहले परिष्कार है और फिर बहिष्कार | दुर व्यक्ति को पहले परिष्कार करने का अवसर द यदि वह परिष्कृत होने की स्थिति में हो तो उस बहिष्कार न करो । जब परिष्कार की संभाव चिन्तन के सूत्र : जोबन की 'हन अनुभूति | २ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012024
Book TitleSadhviratna Pushpvati Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1997
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
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