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________________ साध्वारत्नपुष्पवता आभनन्दन ग्रन्थ .... प्रकार को विचित्र-विचित्र घटनावलियों से गुम्फित यह 'कंचन और कसौटी' वास्तव में ही धीर-साहसी पुरुष के पराक्रम, पुरुषार्थ और भाग्य की कसौटी ही है । इस घटनावस्तु का तात्त्विक पक्ष है-पूर्वजन्मकृत शुभाशुभ कृत्य । जैन धर्म का कर्म-सिद्धान्त । घटनाओं के मध्य सजीव-सा होता नजर आता है । ___ भाषा का प्रवाह, कथोपकथन शैली और उदात चरित्र चित्रण-इस उपन्यास को हिन्दी के श्रेष्ठ पौराणिक उपन्यासों की कोटि में प्रस्तुत करते हैं। महाबल-मलया के रूप में दो धोरोदत चरित्रनायकों के माध्यम से लेखिका ने प्राचीनतम भारत की योगविद्या के चमत्कारों को प्रत्यक्ष अनुभूति कराते हुए अतिमानवीय शक्तियों का मानवीय धरातल पर परोपकार, पर-कष्ट निवारण तथा अबला-संरक्षण, असहाय-सहायता, दुष्टजन सज्जन आदि विविध मानवतावादी पक्षों को उभारा है । इसके साथ लेखिका ने यह भी व्यक्त किया है कि सभी दैविक शक्तियाँ उसी की सहायता करती हैं जिसका स्वयं का आत्मबल अपराजित होता है तथा परोपकार, न्याय-रक्षा एवं अन्याय का प्रतिकार ही जिनका जीवन लक्ष्य होता है। हिन्दी उपन्यासों की शृंखला में इसे हम एक वृहद् पौराणिक उपन्यास कह सकते हैं, जिसकी कथावस्तु पाप का दुष्फल तथा पुण्य का सुफल प्रकट करते हुए मनुष्य को आध्यात्मिक मूल्यों की स्थापना के लिए सजग व सचेष्ट करती हैं। उपन्यास अभी मुद्रणाधीन है, आशा है शीघ्र हो प्रकाश में आ जायेगा। (४) फूल और भंवरा यह भी एक अत्यन्त रसप्रद पौराणिक उपन्यास है, किन्तु इसमें कहीं भी दैविक शक्तियों के चमत्कार को कल्पना नहीं की गई है । अनेकानेक अद्भुत कृत्यों की सर्जना मानवीय बुद्धि से की गई है । एक चतुर नारी दिगभ्रान्त पति को जो किसी अन्य स्त्री के चंगुल में फंसा है और उसी के मायाजाल के कारण अपनी पत्नी से न केवल विमुख है, किन्तु अतीव रूपवती होते हुए भी उसे कानी, काली और कुरूप मानता है, उसे अपनी कुलमर्यादा की रक्षा करते हुए अपने अद्भुत कौशल, चातुर्य और विलक्षण बुद्धि के द्वारा रास्ते पर लाती है । परित्यक्ता और अवमानिता नारी, पति द्वारा प्रताड़ित होकर भी अपना बौद्धिक सन्तुलन व मानसिक गरिमा नहीं खोती है । वह पुरुष को स्वार्थी, कामी और धोखेबाज बताकर गालियाँ नहीं देती है, किन्तु पुरुष की रुचि व प्रवृत्ति का गहरा सूत्र पकड़कर उसे उसी की दुर्बलता से पराजित कर जीतती है । नारी, कभी न हारी, इस उक्ति को चरितार्थ करती है । स्त्री-पुरुष के सम्बन्धों व रुचियों का मनोवैज्ञानिक विश्लेषण करने वाला यह उपन्यास यद्यपि पौराणिक कथानक पर आधारित है, किन्तु फिर भी आधुनिक नारी के लिए बहुत ही मार्गदर्शक व उसकी अस्मिता को बौद्धिक आधार देता है। मदन नाम के श्रेष्ठीपुत्र व गुणसुन्दरी नाम की चतुर श्रेष्ठीकन्या के चरित्र पर टिका यह उपन्यास यह सचित करता है-नारी एक फल है. किन्तु उस फल का रसास्वाद करने का अधिकार सिर्फ उसी भंवरे को है, जो फूल-फूल पर नहीं मंडराकर सिर्फ एक ही फूल के लिए समर्पित होता है। कथानक का प्रवाह तथा रचना सौष्ठव मन को विभोर कर देता है। सजनधर्मी प्रतिभा की धनी : महासती पुष्पवतीजी |22. tion www.jaineli
SR No.012024
Book TitleSadhviratna Pushpvati Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1997
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
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