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साध्वारत्नपुष्पवता आभनन्दन ग्रन्थ
है। त्याग और बलिदान की जीवन्त प्रतिमा, जसमा गरीब, मजदूर कुल में जन्मी थी। पर उसका रूप सौन्दर्य महारानी से भी अधिक चित्ताकर्षक था। गुर्जरेश्वर जयसिंह सिद्धराज अपनी गरिमा को भूलकर उसकी रूप राशि पर दीवाना बन गया और सब प्रयासों में हारने के बाद उसके सतीत्व पर आक्रामक रूप धारण करने लगता है । सत्य-शील की रक्षा के लिए प्राणों को न्यौछावर कर देने वाली वीर नारी 'जसमा' सिद्धराज को ललकारती है, उसके ऐश्वर्य को दुत्कारती है और शील-रक्षा हेतु प्राणोत्सर्ग करतेकरते एक शाप दे जाती है।
प्रस्तुत कथानक को उपन्यास के रूप में रोचक शैली में प्रस्तुत किया गया है । आज सभ्य और सुशिक्षित कहलाने वाली नारी चन्द चाँदी के टुकड़ों के लिए अपनी इज्जत बेचने को तैयार हो जाती है। 3 तुच्छ नाम व धन के लिए तन का सौदा करते हुए भी नहीं हिचकती। उसके समक्ष जसमा जैसी मजदूरी
करके पेट पालने वाली गरीब नारी का यह उदाहरण कितना प्रेरक और साहस जगाने वाला है । जिसने गुर्जरेश्वर सिद्धराज के अपार वैभव को भी ठुकरा दिया और जान देकर के भी अपने शील की रक्षा की। आधुनिक नारियों को इस पावन प्रसंग से शिक्षा ग्रहण करनी चाहिए। (२) किनारे-किनारे
दूसरा उपन्यास है-“किनारे-किनारे" उसमें उनका उपन्यासकार रूप बहुत ही निखर कर आया 2 है। आज के यग में दहेज का दानव सभी को निगलने के लिए मंह बाए खडा है। अमीर भी उससे परेशान
है और गरीब भी । मध्यम वर्ग की स्थिति तो अत्यन्त दयनीय है । वह इस दानव से इतना त्रस्त है कि उसको न रात में चैन पड़ता है और न दिन में ही। सारे घर की सम्पत्ति को होम करके भी वह जीवन भर रोता रहता है । प्रस्तुत उपन्यास में महासतीजी ने एक सुन्दर समाधान प्रस्तुत किया है यदि धनवान अपनी प्यारी पुत्री का विवाह यदि सुशील, गरीब लड़के से करता है तो और उसे प्रीतिदान के रूप में सहयोग देता है तो दोनों ही घर आबाद हो जाते है । दहेज जब प्रीतिदान के रूप में रहता है तब तक वह जन मानस में भार रूप नहीं होता । जब प्रतिदान के रूप में न रहकर दहेज का रूप ग्रहण करता है-तब वह दानव बन जाता है। प्रस्तुत उपन्यास दहेज की सामयिक समस्या पर आधृत है। (३) कंचन और कसौटी
- महासती पुष्पवतीजी की प्रवाहमयी लेखनी इसमें नदी की धारा की भांति बही है । कहीं हास्य रस, कहीं वीर रस, कहीं अद्भुत और कहीं शान्त रस-इस प्रकार रसों के उतार-चढ़ाव तथा बहरंगी छटा के कारण उपन्यास काफी रोचक तथा वैविध्यपूर्ण हो गया है। वीर एवं अद्भुत रस तो पद-पद पर दर्शक को उमंगित करता है और अन्त में शान्तरस के परिपाक में वह पूर्णता प्राप्त करता है।
प्राचीन प्राकृत काव्य-मलयसुन्दरी कथा के आधार पर इसकी कथावस्तु टिकी है । इसके प्रमुख नायक है-राजकुमार महाबल तथा राजकुमारी मलया। इस अद्भुत कथा में विचित्र सुरम्य कल्पनाओं की माला इस प्रकार गूंथी है कि पाठक उनकी मनभावन छटा को देखता हुआ 'परीकथा' जैसी मनोरमता अनुभवता है। आश्चर्यचकित करने वाली अनेक घटनाएँ और अनेक दिव्य वस्तुएँ-सचमु व में मन को गुदगुदा देती हैं । राजकुमार महाबल का प्रादुर्भाव ही आश्चर्यजनक ढंग से होता है। फिर आकस्मिक रूप से मलयासुन्दरी के साथ मिलन, फिर वियोग और फिर मिलन । बीच-बीच में अनेक साहस शौर्यपूर्ण अद्भुत करतब कहीं मलया की वियोग जनित करुण पीड़ा, कहीं परोपकार के लिए जान हथेली पर लेकर राक्षसों व कापालिकों से युद्ध व संघर्ष और कहीं जोखिम उठाकर भाग्य-परीक्षा के लिए चल पड़ना-इस
२१२ / तृतीय खण्ड : कृतित्व दर्शन
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