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________________ साध्वीरत्न पुष्पवती अभिनन्दन ग्रन्थ ---- Hiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiमम्म्म्म्म्म्म्म्म्म शिष्या महासती लाधाजी ने भी संथारा कर लिया और सद्गुरणी जी से कुछ दिनों पूर्व ही स्वर्ग पहुंच गईं । संथारा चल रहा था, महासतीजी ने अपनी शिष्याओं को बुलाकर अन्तिम शिक्षा देते हुए कहा"अपनी परम्परा में ब्राह्मण और वैश्य के अतिरिक्त अन्य वर्णवाली महिलाओं को दीक्षा नहीं देना, तथा मैंने अन्य जो समाचारी बनायी है, उसका पूर्णरूप से पालन करना। तुम वीरांगना हो । संयम के पथ पर निरन्तर बढ़ती रहना। चाहे कितने भी कष्ट आवें उन कष्टों से घबराना नहीं।' सद्गुरुणीजी की शिक्षा को सुनकर सभी साध्वियाँ गद्गद् हो गयीं। उन्हें लगा कि अब सद्गृरुणीजी लम्बे समय की मेहमान नहीं हैं । हमें उनकी आज्ञा का सम्यक् प्रकार से पालन करना ही चाहिए। भाद्रपद सुदी एकम के दिन पचपन दिन का संथारा कर वे स्वर्ग पधारी । इस प्रकार पैंतालीस वर्ष तक महासती सहाजी ने संयम की साधना, तप की आराधना की। आज भी महासती सहाजी के शिष्या-परिवार में पचास से भी अधिक साध्वियां हैं। उन्नीसवीं शताब्दी शासन प्रभाविका लछमाजी महासती रत्नाजी की शिष्या-परिवार में शासन-प्रभाविका ल छमाजी का नाम विस्मृत नहीं किया जा सकता । इनका जन्म उदयपूर राज्य के तिरपाल ग्राम मे सं० १९१० में हआ था। आपके पिता का नाम रिखबचन्दजी माण्डोत और माता का नाम नन्दबाई था। आपके दो भ्राता थे-किसनाजी और वराज जी । आपका पाणिग्रहण मादडा गाँव के साक्लचन्दजी चौधरी के साथ हआ। कुछ समय के पश्चात् साँकलचन्दजी के शरीर में भयंकर व्याधि उत्पन्न हुई और उन्होंने सदा के लिए आँख मूंद लीं। उस समय महासती रत्नाजी की शिष्या गुलाबकुँवरजी मादडा पधारी। वे महान तपस्विनी थीं, उन्होंने अपने जीवन में अनेकों मासखमण किये थे। उनके उपदेश को सुनकर लछमाजी के मन में वैराग्य भावना उबुद्ध हुई । और वि० सं० १६२८ में भागवती दीक्षा ग्रहण की। वे प्रकृति से भद्र, विनीत और सरल मानसवाली थीं। सतो का आशीर्वाद : नौकर बना धन्ना सेठ HEEEEEEEEHHHHHHHHH एक बार वे अपनी सद्गुरुणीजी के साथ बड़ी सादडी में विराज रही थीं। सती-वृन्द कमरे में आहार कर रही थीं कि एक बालक आंखों से आंसू बरसाता हुआ आया। बालक को रोते हुए देखकर लछमाजी ने पूछा-तू क्यों रो रहा है ? बालक ने रोते हुए कहा-मैं गटूलालजी मेहता के यहां नौकरी करता हूँ। मेरा नाम वछराज है । आज सेठ के यहां मेहमान आये हैं और सभी मिष्ठान खा रहे हैं। पर मेरे नसीब में रूखी-सूखी रोटी भी कहां है ? क्षुधा से छटपटाते हुए मैंने भोजन की याचना की। किन्तु उन्होंने मुझे दुत्कार कर घर से निकाल दिया कि तुझे माल खाना है या नौकरी करनी है । मैं अपने भाग्य पर पश्चात्ताप कर रहा हूँ। - लछमाजी ने बालक की ओर देखा । उसके चेहरे पर अपूर्व तेज था। उन्होंने उसे आश्वासन देते हुए कहा-'रोओ मत । कल से तेरे सभी दुःख मिट जायेंगे।' 'बालक हँसता और नाचता हुआ चल दिया। छोटी सादड़ी में नागोरी श्रेष्ठी के लड़का नहीं था। पास में लाखों की सम्पत्ति थी। सेठानी के • कहने से सेठजी बालक बछराज को दत्तक लेने के लिए बड़ी सादड़ी पहुँचे और उसको अपना दत्तक पुत्र घोषित कर दिया। बालक ने महासती के चरणों में गिरकर कहा-- सद्गुरुणीजी, आपका ही पुण्य प्रताप है कि मुझे यह विराट सम्पत्ति प्राप्त हो रही है। आपकी भविष्यवाणी पूर्ण सत्य सिद्ध हुई।' महासती लछमाजी के सहज रूप से निकले हुए शब्द सत्य सिद्ध होते थे। उनको वाचा सिद्धि थी। उनके जीवन के HHHHHHHHHHHHHHHHHHHmmit जैन शासन प्रभाविका अमर साधिकाए एवं सद्गुरुणी परम्परा : उपाचार्य श्री देवेन्द्र मुनि | १४३
SR No.012024
Book TitleSadhviratna Pushpvati Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1997
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
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