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________________ बार सावारत्न पुष्पवती अभिनन्दन ग्रन्थ -PHH जैसे विकसित पुष्पों से युक्त लता समस्त आकाश को भी सुगन्धित कर देती है वैसे हो पू० पुष्पवती जी म० सा० अपने ज्ञान की दीप्ति से सभी पदेशों को अज्ञानान्धकार से मुक्त कर देती ।१६। पुष्पवती जी म. सा. इस देश में जहाँ भी विहार करती हैं, वहां के लोग उनके उपदेश से प्रभावित होकर मदिरा आदि का सदा के लिए त्याग कर देते हैं ॥ १७ ॥ जिनकी शिष्याएँ एवं प्रशिष्याए-जिनका सर्वत्र नाम है-सभी जगह धर्मामृत की वृष्टि करके भव्य जीवों को प्रति बोध दे रही हैं-मोह निद्रा से जगा रही हैं ।। १८ ।। यथा लता पूष्पवती समन्तात्, ससौरभं सन्तनुते नभो 5 पि । तथा सती पुष्पवती स्वदीप्त्या ध्वस्तान्धकारान् कुरुते प्रदेशान् ।।१६।।। यत्रैव सा पुष्पवतीति नाम्नी, साध्वी विहारं तनुते ऽ त्र देशे । तत्रत्य लोकः प्रतिबोधितः सन्, मद्यादिकं मुञ्चति जीवनान्तम् ।।१७।। शिष्याः प्रशिष्याश्च सदा यदीया, विश्वम्भरा विश्रु तनामधेयाः । सर्वत्र धर्मामृतवर्षणेन, तान् भव्यजीवान् प्रतिबोधयन्ति ॥१८॥ यस्यः पदाम्भोजरजः पवित्रो, मध्यप्रदेशो 5 पि समर्चनीयः। तथैव जातो ऽत्र मरुप्रदेशः, स मेद पाटो पि च तीर्थकल्पः ।।१६।। एवं महाराष्ट्र मितिप्रदेशः, स गुजराख्यो । पि च पूष्पवत्याः। विहारतः प्राप्तपवित्रभावी, चिराय. जातौ भुवनप्रसिद्धौ ॥२०॥ आरभ्य दीक्षा दिवसाद् यथाऽस्या, निरन्तरायं चलिता पवित्रा। या साधना सा 5 स्तु सदा तथैव, मनोऽभिलाषी मम वर्तते ऽयम् ।।२।। दीक्षा स्वर्णजयन्ती यस्याः, सत्याः समस्ति सा धन्या। पूज्या पुष्पवतीति, ख्याता सर्वत्र लोकेऽस्मिन् ।।२२।। जिनके चरण कमलों की धूलि से मध्य प्रदेश भी पूज्यनीय बन गया है। इसी तरह मारवाड़ भी सम्मान्य हो गया है और मेवाड़ तो तीर्थस्थान जैसा प्रतीत होने लगा है ॥ १६ ॥ इसी तरह महाराष्ट्र और गुजरात प्रदेश भी पूज्य पुष्पवती म० सा० के विहार से पवित्र होकर हमेशा के लिए सर्वत्र प्रसिद्ध हो गये हैं ॥ २० ॥ दीक्षा के दिन से लेकर इन साध्वी जी की जो पवित्र साधना अभी तक निर्विघ्न चलती आ रही है, वह आगे भी सदा ऐसी ही बनी रहे--यह मेरी हार्दिक अभिलाषा है ॥ २१॥ जिनकी दीक्षा की यह स्वर्ण जयन्ती मनाई जा' रही है, समस्त विश्व में विख्यात वे पूज्य पुष्पवतीजी महासती धन्य हैं ॥ २२ ॥ पुष्प सूक्ति कलियां वस्तुतः दया का काम लड़खड़ाते पैरों को नई शक्ति प्रदान करना है, निराश हृदय में जागृति की नई प्रेरणा देना है, गिरे हुए को उठने की सामर्थ्य देना है। ख्याता सर्वत्र लोकेऽस्मिन | ११६ www.jaine
SR No.012024
Book TitleSadhviratna Pushpvati Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1997
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
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