SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 163
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ साध्वीरत्न पुष्पवती अभिनन्दन ग्रन्थ रहा था विहारादि में । बालक चतुरलाल को कृपा दृष्टि रही। मेरी पूजनीया भोजाईजी बदाम देखकर उन्होंने मेरी भावना को प्रोत्साहन दिया। बाई की धर्म में प्रारम्भ से ही रुचि रही और पूज्य ओर गरुणीजी की सेवा में बालक को रहने का भाई साहब पन्नालालजी समाज के कार्यों में अगवा प्रथम ही अवसर था। दर्शन करने का भी प्रथम रहे हैं । भोजाईजी और भाईसाहब की प्रेरणा से ही मौका था। प्रथम दर्शन में ही बालक के मन महासतो पुष्पवतीजी का उनके सद्गुरुणीजी सोहन पर गहरा प्रभाव पड़ा। कुछ दिन बाद गुरुदेव श्री कंवरजी म० तथा माताजी प्रतिभा मूर्ति प्रभावतीजी का भी पदार्पण हो गया। के साथ सन् १९५५ में मदनगंज चातुर्मास हुआ । उस वर्ष गरुदेव का चातुर्मास जोधपुर में था उसके पहले महासतीजी सन १९५३ में जयपर चातऔर गुरुणीजी का वर्षावास सादड़ी मारवाड़ में सि हेतु पधार रही थी। तब मदनगंज पधारी थी। था । बालक चतुरलाल की भावना की सुदृढ़ करने तभी से हमारा आकर्षण उनके प्रति था। में गुरुणीजी महाराज का अपूर्व योगदान रहा । चातु महासती श्री सोहनकुंवरजी म. बहुत ही र्मास के पश्चात् मैंने गुरुणीजी महाराज से प्रार्थना आत्मार्थी महासती थी। किसी प्रकार का प्रपञ्च की कि आपश्री का चातुर्मास गुरुदेवश्री के सान्निध्य उनके जीवन में नहीं था । और माताजी म० का तो में होगा तो चातुर्मास में यदि योग हुआ तो दीक्षा कहना ही क्या ? उनकी वाणी मिश्री से भी अधिक का मंगलमय कार्य भी सानन्द सम्पन्न हो सकता है। मीठी थी। सभी के साथ उनका आत्मीयता पूर्ण हमारी प्रार्थना को संलक्ष्य में रखकर चातुर्मास व्यवहार था। वे सदा ज्ञान और ध्यान में तल्लीन अजमेर हुआ । और उसी चातुर्मास में चतुरलाल रहती थी। इस कारण हमारी भोजाईजी का आकने गुरुदेव के चरणों में दीक्षा ग्रहण की और वे र्षण और अधिक था। मदनगंज का यह उनका दिनेश मुनि के नाम से आज विश्रुत हैं। प्रथम वर्षावास था । उस वर्षावास के पश्चात् जहाँ गुरुणीजी महाराज के पावन सान्निध्य में मैं भी महासतीजी के चातुर्मास हुए, हमारा परिवार अनेक बार आया हूँ और जब भी आया हूँ तब उनके उनकी सेवा में पहुँचता रहा । उसके पश्चात् सन् चेहरे पर वही प्रसन्नता, वही आह्लाद मुझे दिखायी १९७५ में, सन १९८३ में महासतीजी के चातुर्मास दिया । जब भी मैं चरणों में पहुँचा तब मुझे सदा मदनगंज को मिले । और कारण विशेष से शेषकाल स्नेहपूर्ण आशीर्वाद मिला । दीक्षा स्वर्ण जयन्ती के में भी लम्बे समय तक महासतीजी का मदनगंज में पावन अवसर पर मैं अपनी ओर से अपनी श्रद्धा सम विराजना रहा । मदनगंज का प्रत्येक श्रद्धालु र्पित करता हूँ और यही जिनशासन देव से प्रार्थना महासतीजी के प्रति आकर्षित रहा है । करता हूँ कि आप जिन शासन की प्रभावना करती उनकी प्रवचन कला मनमोहक है। उसमें तात्विक र हमें पथ प्रदर्शन करती रहें। विवेचन के साथ ही जीवन जीने की कला का भी विश्लेषण होता है । जीवन व्यवहार के अनेक पहलुओं पर महासतीजी प्रकाश डालती हैं। जिससे जीवन में सुख और शान्ति का संचार होता है। मधु र व्य व हा र उनका मधुर व्यवहार हर व्यक्ति को चुम्बक की तरह आकषित करता है। -धनपतसिंह पन्नालाल बरडिया, (मदनगंज) दीक्षा स्वर्ण जयन्ती के सुनहरे अवसर पर मैं बरडिया परिवार में जन्म लेने के कारण महा- अपनी ओर से तथा अपने परिवार की ओर से श्रद्धा सती पुष्पवतीजी के प्रति हमारा स्वाभाविक आक- समन समर्पित करता हुआ अपने आपको गौरवान्वित र्षण रहा । तो उनकी भी हमारे परिवार पर अपार अनुभव करता हूँ। R AITARA १०४ | प्रथम खण्ड : शुभकामना : अभिनन्दन TOP +PORDS www.jainell
SR No.012024
Book TitleSadhviratna Pushpvati Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1997
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy