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________________ आदिवचन चीन के महान दार्शनिक कन्फ्यूशियस ने नारी को संसार का सार कहा है तो भारत के मूर्धन्य महामनीषियों ने नारी की महिमा और गरिमा का उत्कीर्तन करते हुए लिखा है कि जहाँ पर नारी की पूजा-अर्चा होती है, वहाँ पर देवताओं का निवास है । भारतीय साहित्य में नारी नारायणो के रूप में सदा प्रतिष्ठित रही है। ऋद्धि सिद्धि, समृद्धि, ह्री, श्री, धृति, कीर्ति-शक्ति, सरस्वती, बुद्धि प्रभृति जितने भी शब्द हैं वे व्याकरण की दृष्टि से स्त्रीलिंग हैं । कोई भी शब्द पुलिंग नहीं है। जब नारी शक्ति को जीवन में प्रबल प्रतिष्ठा प्राप्त हुई तब विश्व की जितनी भी दिव्य और भव्य विभूतियाँ थीं, उसका मूल आधार नारी में माना गया । परिवार, समाज और राष्ट्र के लिए बल, बुद्धि और धन इन तीन महान शक्तियों की आवश्यकता है। अन्याय, अत्याचार-अनाचार-भ्रष्टाचार और दुराचार से जूझने के लिए बल की आवश्यकता है। उसके लिए भारतीय चिन्तकों ने देव की नहीं, अपितु काली, महाकाली, दुर्गा आदि देवी की कल्पना की है । जब गुरु गम्भीर बौद्धिक प्रश्नों के समाधान का प्रश्न उपस्थित हुआ तो उसके लिए भी देवी की ही कल्पना की गई। सरस्वती देवी बौद्धिक शक्ति का प्रबल प्रतिनिधित्व करती है और जब दरिद्रता के दैत्य को नष्ट करने का प्रश्न समुपस्थित हुआ तब लक्ष्मी के रूप में नारी को ही प्रतिष्ठा संप्राप्त हुई। इस धरती पर सबसे अधिक ज्येष्ठ-श्रेष्ठ और पूज्या माता मानी गई है। वह वन्दनीया और अर्चनीया है । मानव जाति पर उसके अगणित उपकार हैं। मानव जाति में ही नहीं अपितु सम्पूर्ण प्राणी जगत में मातृ जाति की विशिष्ट गरिमा है । समस्त जीव सृष्टि माता के उपकारों का ही जीवन्त निदर्शन है । सन्तान को जन्म देकर उसका पालन-पोषण-संरक्षण-संवर्द्धन और संस्कार देकर बाह्य एवं अन्तर व्यक्तित्व के निर्माण में माता का अद्वितीय स्थान है। उसे प्राणियों का प्राण माना गया है। और उसे सष्टि की सर्वाधिक गरिमा मण्डित शक्ति के रूप में अंकित किया गया है। उसके असीम उपकारों का बदला कभी भी चुकाया नहीं जा सकता। तीर्थंकर जैसे अध्यात्मयोगी को और चक्रवर्ती जैसी संसार विभूति को जन्म देने वाली नारी ही है । तीर्थंकर देव का जन्ममहोत्सव मनाने हेतु जब दिव्य देव शक्तियां धरती पर आती हैं तो सर्वप्रथम 'नमो रयणकुक्खधारिणी' सम्बोधन से माता की वन्दना करती हैं । मातृ शक्ति ममता, उदारता, करुणा वत्सलता, कोमलता की अधिष्ठात्री है। धर्म और अर्थ की दात्री है। वैभव और सौभाग्य की वरदायिनी है। __ मानव सभ्यता के विकास और उत्थान में कला संस्कृति के शिक्षण और प्रशिक्षण में जहाँ नारी अग्रपदा रही हैं वहीं साधना, सेवा और आध्यात्मिक विभूति की उपलब्धियों में भी नारी ही प्रथम है । १२ . आदिवचन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012024
Book TitleSadhviratna Pushpvati Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1997
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
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