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महासती पुष्पवतीजी का जन्म उदयपुर में हुआ । उन्होंने दीक्षा भी उदयपुर में ग्रहण की और शिक्षा भी । इसलिए उदयपुर निवासियों का यह दायित्त्व है कि वे 'दीक्षा स्वर्ण जयन्ती' के सुनहरे अवसर पर एक ऐसी अद्भुत भेंट उनके कर-कमलों में समर्पित करें, जो चिन्तन से लबालब भरी हुई हो।
हमें यह लिखते हुए अपार आह्लाद है कि महासती पुष्पवतीजी ने सर्वप्रथम दीक्षा की पहल की और उसके पश्चात् उनके लघु भ्राता श्री देवेन्द्र मुनिजी ने भी दीक्षा ग्रहण कर श्रमण संघ की गरिमा में
वृद्धि की । और आज वे श्रमण संघ के उपाचार्य पद पर आसीन हैं। उसके पश्चात् मातेश्वरी प्रभावतीजी ने भी संयम-साधना स्वीकार कर संघ की गरिमा में चार चाँद लगाये। उसके बाद अन्य ११ पारिवारिकजनों ने भी साधना के पथ पर कदम बढ़ाकर संयमी जीवन की महत्ता प्रदर्शित की।
महासतीजी के अभिनन्दन ग्रन्थ के माध्यम से हमने सर्वप्रथम यह पहल की है कि श्रमणसंघ में जो गरिमा सन्त की है, वही गरिमा एक श्रमणी की भी है। श्रमणियाँ जिनशासन की ऐसी जगमगाती ज्योतियाँ रही हैं, जिन पर हमें नाज है। वे जिनशासन रूपी भव्य-भवन की नींव की ईंटें हैं। जो भूमि में रहकर भव्य-भवन को चिरस्थायी बनाये हुए हैं।
प्रस्तुत ग्रन्थ के सम्पादन का उत्तरदायित्व श्री उपाचार्य देवेन्द्र मुनिजी ने वहन किया, उन्होंने अपने कलम के जादुई-स्पर्श से प्रत्येक निवन्ध को संजाने और सँवारने का प्रयास किया है। उन्हीं की प्रेरणा से उत्प्रेरित होकर मुर्धन्य मनीषियों ने मौलिक और उत्कृष्ट लेख प्रकाशनार्थ प्रदान किए। लेखों की संख्या अत्यधिक हो जाने से और ग्रन्थ की पृष्ठ संख्या सीमित होने से हमें अनेक महत्त्वपूर्ण लेख भी छोड़ने पड़े हैं । मैं उन सभी लेखकों का आभारी हूँ. जिन्होंने हमें इतनी उत्कृष्ट सामग्री इतने स्वल्प समय में प्रदान की। जिन लेखकों के लेख हम न दे सके हैं, उनसे हम हार्दिक क्षमाप्रार्थी हैं।
हम आशीर्वाददाता, शुभेच्छूक, सम्पादक-मण्डल, निदेशक आदि सभी के प्रति हार्दिक कृतज्ञता ज्ञापन करते हैं, जिन्होंने प्रस्तत ग्रन्थरत्न को सर्वाधिक सुन्दर बनाने का उपक्रम किया है। मुद्रणकला की दृष्टि से ग्रन्थ को चित्ताकर्षक बनाने का सम्पूर्ण श्रेय स्नेह सौजन्यमूर्ति श्रीचन्द सुराना जी को है, जिन्होंने स्वल्पावधि में ग्रन्थ को तैयार कर हमारे भार को हल्का किया। मैं किन शब्दों में उनका आभार माने, क्योंकि वे हमारे ही हैं।
भक्तिभावना से विभोर होकर जिन उदारमना महानुभावों ने आर्थिक सहयोग प्रदान कर अपनी अनन्त श्रद्धा का परिचय दिया है, उन सभी के प्रति हम आभार व्यक्त करना अपना कर्तव्य समझते हैं।
मुझे पूर्ण आत्म-विश्वास है कि अभिनन्दन ग्रन्थ के रूप में हमारी भक्ति का यह जीवन्त श्रद्धासुमन है, जो आने वाली पीढ़ी के लिए मार्गदर्शक होगा।
__उपाचार्य श्री के मार्गदर्शन में श्री दिनेश मुनिजी ने प्रस्तुत ग्रन्थ के सम्पादन आदि कार्य के लिए जो कठिन श्रम किया है, वह भी भुलाया नहीं जा सकता।
-“सम्पतीलाल बोहरा
अध्यक्ष
श्री तारक गुरु जैन ग्रन्थालय, उदयपुर (राज.)
प्रकाशक के बोल
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