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________________ साध्वीरत्न पुष्पवती अभिनन्दन ग्रन्थ ifffffffffffiiiiiiiiiii iiiiiiiiiiiiiitititithiHRADHEHE अ ध्य य न ज्यो ति -दलपतसिंह बाफना, (उदयपुर) भारत के पास यदि सन्त और महासती की बीमारी के पश्चात् स्वर्गस्थ हो गई थी अतः मेरी पावन परम्परा न होती तो भारत अध्यात्म विद्या मातेश्वरी ने पुष्पवती जी का अत्यधिक प्यार से से वंचित रहता आज जो भारत विश्व गुरु के लालन-पालन किया। मेरी माँ का इन पर नाम से गौरवान्वित है वह नहीं होता, भले अन्य अत्यधिक ममता थी तो पुष्पवती जी का भी हमारे देश भौतिक दृष्टि से समृद्ध रहे हों किन्तु जब भी परिवार पर अत्यधिक स्नेह रहा है। मैं जब बहुत आत्मा-परमात्मा कर्म पूनर्जन्म आदि दार्शनिक ही छोटा था, तभी माँ के साथ आपके पास जाता गुत्थियों को सुलझाने का प्रसंग आता है वहाँ सहज आता रहा, मेरे पूज्य पिताश्री चन्द्रमोहनसिंहजी ही भारतीय चिन्तन की ओर महा मनीषियों की भी कभी भी सन्त-सतियों के सम्पर्क में नहीं आते दृष्टि केन्द्रित हो जाती है। इस सार्वभौम सत्य को थे। परन्तु पुष्पवती जी के और उपाचार्य देवेन्द्र उजागर करने का श्रेय आत्म दृष्टा सन्त और मुनिजी के सम्पर्क में आने के पश्चात् उनके जीवन सतियों को है। में आमूल-चूल परिवर्तन हो गया। सन्त और सतियों का चिन्तन सरिता में रनान आज हमारे परिवार में जो धर्म की भावना कर भारत सदा आत्मस्फुर्त रहा, आज भी सन्त अपनी पत्नी शांतादेवी व पुत्र रमेशचन्द्र, प्रकाश और सतियों के चरणारविन्दों में श्रद्धालओं के चन्द्र, नवीनचन्द्र आदि दिखलाई देती है, उसका सिरनत हैं, उनके चरणों में पहुंचकर और उनके सारा श्रेय आपको है। हमें गौरव है कि हमारे सान्निध्य को पाकर मानव का कायाकल्प हो जाता परिवार से मौसी और भाई-बहन ने दीक्षा लेकर है । दुर्गुणों के स्थान पर सद्गुणों का सर-सब्ज जो धर्म की प्रभावना की है कि जिससे हमारा बाग लहलहाने लगता है। सिर उन्नत है। दीक्षा स्वर्ण जयंती के पावन महासती पुष्पवतीजी मेरी मौसी प्रेमदेवीजी प्रसंग पर मैं अपनी ओर से अपने परिवार की की सुपुत्री हैं, मेरी माता कृष्णाकुमारी उनकी ओर से श्रद्धा के समन समर्पित करते हए आनन्द सगी बहिन थो । मेरो मौसी लघुवय में लम्बी विभारहू। RE पुष्प सूक्ति कलियां 0 यद्यपि प्रेम निर्मूल्य है, किन्तु आत्मा में प्रेम का प्रकाश प्रज्वलित करने के लिए उस पर आए हुए मल विक्षेप, स्वार्थ, संकीर्णता मोह, घृणा, द्वष ईर्ष्या, द्रोह आदि आवरणों को हटाना पड़ेगा। सहानुभूति अहिंसा के साधक के अन्तःकरण की गहन मौन और - अव्यक्त कोमलता है।। । दया की शक्ति अपार है। सेना और शस्त्रबल से तो किसी राज्य पर अस्थायी विजय मिलती है, परन्तु दया से मामव-मन पर स्थायी और अलौकिक विजय प्राप्त होती है । ८६ | प्रथम खण्ड : शुभकामना : अभिनन्दन www.jainel
SR No.012024
Book TitleSadhviratna Pushpvati Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1997
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
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