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________________ साध्वारत्न पुष्पवता आभनन्दन ग्रन्थ ए क म हा न जी व न गौ र व __ ----मनोहरसिंह बरड़िया; (उज्यपुर) व्यक्तित्व का निर्माण आचार और विचार रूपी दो धातुओं से होता है, जिस जीवन में आचार की ऊँचाई और विचार में गहराई होती है वही जीवन महान बनता है । सन्त जीवन में विचारों की ऊँचाई में आचार की गहराई भी होती है और वही उनकी महानता का कारण भी है। परम विदुषी साध्वी रत्न पुष्पवतीजी एक पहुँची हुई साधिका हैं स्थानकवासी समाज की वे एक प्रमुख साध्वी हैं उनके गौरवमय जीवन को जब में निहारता हूँ तो मेरा हृदय बांसो उछलने लगता है। _ मुझे गौरव है कि हमारे परिवार में ऐसी परम विदुषी साध्वी हैं जिनके साथ मेरे बाल्यकाल की मधुर संस्मरण जुड़े हुए हैं। हम दोनों हमजोली हैं वे मेरे ज्येष्ठ भ्राता जीवनसिंहजी की पुत्री हैं। मेरे ज्येष्ठ भ्राता एक पुण्य पुरुष थे; उनका व्यक्तित्व बहुत ही तेजस्वी था। उनका मेरे पर अपार प्रेम था, पुष्पवतीजी जिनका सांसारिक नाम सुन्दर था, सुन्दर को और मेरे को ज्येष्ठ बंधु समान प्यार करते थे। नित्य-नई खाने की वस्तु, खेलने की वस्तु और पहनने के लिए बढिया से बढिया वर जहाँ उनका अपार स्नेह था, वहाँ हम उनके ओजस्वी तेजस्वी व्यक्तित्व से सदा डरते भी थे। भाई साहब के निधन के पश्चात् मेरे भाभीजी श्री तीजकुंवर बाई और मेरा भतीजा धन्नालाल तीनों के अन्तर्मानस में वैराग्य भावना प्रबुद्ध हुई। हमारे परिवारिकजनों ने दीक्षा न देने के लिए प्रयत्न किया, मेरे पूज्य पिताश्री भी जब तक जीवित रहे तब तक यह प्रयास करते रहे। पिताश्री के स्वर्गवास के पश्चात् सर्व प्रथम सुन्दर ने दीक्षा ग्रहण की और उनका नाम महासती पुष्पवती रखा गया, उसके पश्चात् धन्नालाल ने भी दीक्षा ग्रहण की और उनका नाम देवेन्द्रमुनि रखा गया । तदनन्तर भाभीजी ने भी दीक्षा ग्रहण की, और वे प्रभावतीजी महाराज के नाम से विश्रुत हुई। तीनों ने हमारे कुल के गौरव में चार-चाँद लगाए । भाभीजी ने स्वयं को तो महान बनाया हो साथ ही अपने पुत्र और पुत्री को भी साधना के महामार्ग पर बढ़ाकर जैन धर्म की ज्योति में चार-चाँद लगाए । आज भाभीजी महाराज हमारे बीच नहीं हैं, पांच वर्ष पूर्व उनका स्वर्गवास हो गया। उनका यशस्वी जीवन सभी के लिए प्रेरणादायी रहा। ___मुझे यह जानकर हार्दिक प्रसन्नता हुई मेरी भतीजी महाराज पुष्पवतीजी जिन्हें दीक्षा लिये ५० वर्ष पूर्ण होने के उपलक्ष्य में एक विराट काय अभिनन्दन ग्रन्थ समर्पित किया जायेगा । दिन कितने जल्दी | बीतते हैं एक दिन हम दोनों साथ-साथ खेले हैं और आज पचास वर्ष साधना के पूरे हो रहे हैं। धन्य है इनके जीवन को इन्होंने दीक्षा लेकर पहले शिक्षा प्राप्त की और भारत के अनेक प्रान्तों में विचरण कर जन-जन के मन में एक अभिनव चेतना का संचार किया और अनेक ग्रन्थों का लेखन किया। पर मैं तो संसार के मोहमाया में ही उलझा रहा, किन्तु उन्होंने अपने जीवन को विराट बनाया । परिवार के संकीर्ण घेरे से मुक्त होकर विश्व बंधुत्व की भावना को अपनाने से वे महान बन गयीं। मैं अपनी ओर से, अपनी धर्मपत्नी लाड़जी की ओर से और अपने पुत्र हर्षवर्धन की ओर से यह मंगल कामना करता हूँ कि आप सदा स्वस्थ रहकर धर्म की प्रभावना करती रहें। Hit एक महान जीवन गौरव | ८५ www.jain
SR No.012024
Book TitleSadhviratna Pushpvati Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1997
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
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