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साध्वीरत्न पुष्पवती अभिनन्दन ग्रन्थ
విరించిందించిందించిందించిందింంంంంంంంంంంంంంది मंगल एकादशी
-उपप्रवर्तक श्री सूकन मुनिजी అందించడంంంంంంంంంంంంంంంంంంంంంంంంంంంంంంంంంంంంంంంంంంంంంచిక
पुष्प वाटिका खिल रही, सौरभ साथ सुगंध । श्रमणी सत्य विकास से, ज्योतित होत अमंद ॥ १ ॥
सोहन सोमा सम किया, जग दीपित है आज । सद्गुरु दिव्य प्रकाश से, झिलमिल होत समाज ।। ६ ॥
पञ्च-व्रत की साधना, है जीवन पर्यन्त । मुक्ति मार्ग सच्चा यही, मगंलमय जयवन्त ॥७॥
दया, दान, संयम तथा, दमनवृत्ति हैं तत्त्व । जैन धर्म की सीख है, तदितर का न महत्व ।। ८ ।।
दिन दूनी महिमा बढ़े, धर्म - दीप्ति - संयोग । समता की सरिता वहे,
मिटें जगत के रोग ॥ २॥ विमल गन्ध बहती रहे, चाहत हैं मुनि-वृन्द । जगतीतल शोभा बढ़े, तब जीवन आनन्द ।।३।।
तप संयम अनुराग से, वहे ज्ञान की धार । गुरु पुष्कर आशीष से,
होवे बेड़ा पार ।। ४ ॥ देव देव सम बन्धु हैं, प्रेम - प्रभा-सी मात । संयम धन वक्षावियो, जीवन है अवदात ॥ ५ ।।
गुरूवर मरूधर केसरी. जयकारी भगवन्त । सुकन शिष्य प्रणमत उन्हें, कोटि-कोटि जयवन्त ॥६॥
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सिद्धि सिद्धि बढ़ती रहे, जीवन-वृद्धि समेत । सुकन-भावना है यही, यशकारी पर हेत ॥ १० ॥
अभिनन्दन श्रमणी तणौं, शोभित पाठक हाथ । मंगलमय दीपित रहे, जन शुभकारी साथ ।। ११ ।।
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प्रथम खण्ड : शुभकामना : अभिनन्दन
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