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________________ साध्वारत्नपुष्पवता आभनन्दन ग्रन्थ | हृदयंगम कर लेता है । मैल से युक्त स्वर्ण को हम जा रही है ,इस उपलक्ष में श्रमण संघीय आचार्य | ज्यों-ज्यों अग्नि में तपाते हैं, त्यों-त्यों वह अधिक भगवान्, विश्वविभूति समतायोग के साधक पूज्य निखरता है, चमकता है। एवं विशुद्ध कुन्दन वन १००८ श्री आनन्दऋषिजी म० सा०, राज० केसरी, जाता है । चन्दन को जैसे-जैसे शिला पर घिसा अध्यात्मयोगी, उपाध्याय पूज्य गुरुदेव श्री पुष्कर जाता है, वैसे-वैसे ही उसमें सुरभि का विकास मुनिजी म० सा० प्रभुति महापुरुषों के शुभाशीर्वाद होता रहता है। उसी प्रकार संयमी जीवन में ऐसे एवं साहित्य वाचस्पति,श्रमण संघीय, साहित्य शिक्षण क्षण भी आते हैं, जब साधारण मानव उनसे सचिव, श्रद्धय गुरुदेव श्री देवेन्द्र मुनिजी म. घबराकर अपने पर पीछे हटा देता है। किन्त जो शास्त्री' के निर्देशन । सम्पादकत्व में अभिनव श्रमण/श्रमणी महापुरुष है, वे उन क्षणों में भी अभिनन्दन ग्रन्थ' का प्रकाशन होने जा रहा है । अपूर्व, शौर्य धैर्य, सहिष्णुता और तितिक्षा का दीक्षा स्वर्णजयन्ती के पावन प्रसंग पर मेरी परिचय देते हैं । महासती पुष्पवतीजी म० का यही हार्दिक अभिलाषा है कि आप जहाँ भी पधारें, संयमी जीवन भी तितिक्षा और सहिष्णुता रूपी वहाँ पर संयम रूपी यश की सुगन्ध फैलाकर सुगन्ध से दिग्-दिगन्त में सुवासित हो रहा है! जैनधर्म की विजय-वैजयन्ती फहराने में एवं आचार्य महक रहा है। देव आनन्द के शासन में चार चाँद लगाने तथा आपमें ऐसे अनेक गुण विद्यमान होने पर भी श्रमण-संघ की गौरव-गरिमा वृद्धिंगत करने में लेख की श्रृंखला द्रौपदी के चीर की भाँति दीर्घ अपना महान् योगदान प्रस्तुत करें, आपके सद्गुण नहीं हो जायें, अतः मैं अपनी लेखनी को यहीं मानव-मेदिनी के जीवनाकाश में सदा सर्वदा विराम देती हूँ। सितारों की तरह आलोकित होते रहें; वीर प्रभु आप अपने संयमी जीवन के ५० वर्ष पूर्ण करने से यहीं मंगल-मनीषा ! अन्त ह द य का अभि न न्द ज –महासती संघमित्रा जी -महासती सुजाताजी __जिसका हृदय पुष्प से भी कोमल हैं, जिसका देखा नहीं किन्तु उनकी जीवन गाथा मैंने कानों जीवन चन्द्र से भी शीतल है, जिसका चरित्र क्षीर से सुनी है। मुझे आपकी मधुर वाणी सुनने का से भी उज्ज्वल है, जिसका ज्ञान पानी से भी भी अवसर नहीं मिला किन्तु आपके प्रवचनों को निर्मल है, उनको हम अर्पण कर रहे हैं अन्तर्ह दय पढ़ने का सौभाग्य मिला। उस आधार से मैं लिख का अभिनन्दन । सकती हूँ कि आपके प्रवचनों में चिन्तन का ___मैं क्या लिखू ? किन शब्दों में आपके जीवन सागर उमड़ रहा है। को चित्रित करूं । आपका जीवन सागर से गहन राजस्थान की धरती का एक-एक कण है, पृथ्वी से भी अधिक धैर्यवान है । अनन्त आकाश वीरांगनाओं की गाथा से गौरवान्वित है, तपसे भी विशाल है और सुमेरू पर्वत के समान त्याग और शौर्य की जीती जागती अगणित अडोल है, अकम्प है। मैंने उनको कभी आँखों से वीरांगनाएँ वहाँ हुईं, उन्हीं वीरांगनाओं की लड़ी अन्तर्हृदय का अभिनन्दन | ४१
SR No.012024
Book TitleSadhviratna Pushpvati Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1997
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
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