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________________ साध्वीरत्न पुष्पवती अभिनन्दन ग्रन्थ में रहे है, जिनका व्यावहारिक एवं क्रियात्मक रूप त्यागी - महापुरुषों की जीवन - सरिता में अवलोकन किया जा सकता है | अहिंसा, संयम और तप की त्रिवेणी में अवगाहन कर जो अपने जीवन को कृतकृत्य । धन्य बना रही हैं । उनमें परम विदुषी महासती श्री पुष्पवतीजी म० सा० का नाम बड़े गौरवपूर्ण शब्दों में लिया जा सकता है । आपका आचारिक नियम एवं वैचारिक निष्ठा प्रत्येक नर-नारी के लिए स्पृहनीय है । आपकी वाणी का ओज जनमेदिनी के कर्ण-कुहरों में गुंजायमान हो रहा है । आपके पावन प्रवचनों का सानिध्य प्राप्त करके अनेक मुमुक्षु प्राणी अपना जीवन दान, शील, तप, भाव प्रभृति सद्गुणों की ओर अग्रसारित कर रहे हैं । आप स्वयं ज्ञान, दर्शन, चारित्र रूप रत्नत्रय से अपने जीवन को आलोकित करके अन्य अनेक भव्य आत्माओं को रत्नत्रय का आलोक का मार्ग प्रदर्शित कर रही हैं । महासती पुष्पवतीजी म० का व्यक्तित्व हिमालय के समान महान्, आकाश के समान अनन्त और सागर के समान गम्भीर है । "सागर इव गम्भीरा " ! आपके मुख मण्डल पर तप । संयम की दीप्तिमान आभा परिलक्षित होती है । आपकी प्रकृति अत्यन्त मृदुल एवं साथ ही साथ वाणी में भी ओज है । विषम से विषम परिस्थितियों में भी आप घबराती नहीं किन्तु धैर्य और साहस का परिचय देती हुई पर्वत की तरह अचल रहने की दृढ़ता और कठोरता का सन्मार्ग प्रस्तुत करती है। "वज्रादपि कठोराणि, मृदूनि कुसुमादपि "-- महापुरुषों के अन्तर्हृदय की यही विशेषता होती है कि वे दूसरों के दुःखों एवं कष्टों से सन्तप्त प्राणियों के प्रति अत्यन्त करुणाशील होते हैं । एक तरफ जहाँ वे फूलों से भी अधिक मृदु [कोमल ] होते हैं, तो दूसरी तरफ कर्त्तव्य पालनता एवं अपने पर आये हुए संकटों के समय वज्र से भी अधिक कठोर हो जाते हैं । महासतीजी के संयमी जीवन में ऐसे प्रसंगों के उपस्थित होने पर भी समय-समय पर आप उदात्त स्वभाव का परिचय देती रहती हैं । जब ४४ | प्रथम खण्ड : शुभकामना : अभिनन्दन आपने ममता के बन्धनों को तोड़कर संयम के महामार्ग पर अपने मुस्तैदी कदम बढाएँ तो अनेक तरह के प्रलोभन और संकट भी आपको अपने निश्चय से चलित करने में समर्थ नहीं हुए, विपुल वैभव, विशाल परिवार और सुख के सभी साधनों को छोड़कर आपने साधना का कंटकाकीर्ण पथ अपनाया, वह वस्तुतः प्रशंसनीय और अनुकरणीय है । साधना के क्षेत्र में प्रवेश करने के अनन्तर आपने संस्कृत, प्राकृत, हिन्दी आदि भाषाओं पर आधिपत्य करके आगमदर्शन, न्याय, काव्य आदि की उच्चतम शिक्षा प्राप्त की । "विद्या विनयेन शोभते" इस उक्ति के अनुरूप आपने विनय, विनम्रता, एवं मृदुलता के कारण अपनी कुशाग्र बुद्धि से ज्ञान एवं विद्या के क्षेत्र में एक विशेष सफलता अर्जित की । स्व-पर कल्याण के लिए एवं जिन शासन के लिए पूर्णरुपेण समर्पित कर दिया आपने अपने आपको ! लगभग ५० वर्ष के अपने संयमी जीवन में चतुर्विध संघ की विविध प्रकार से आप उल्लेखनीय सेवाएँ कर रही हैं। तथा वीतराग शासन के अभ्युदय के लिए भी आप पूर्णरूपेण कटिबद्ध है । आपकी वाणी में वह जादू है, जो मानवसमुदाय को चुम्बकवत् अपनी ओर आकृष्ट कर लेती हैं । पद्म साध्वीरत्न श्री पुष्पवतीजी म० एक स्पष्ट वक्ता, उदार विचारिका एवं गम्भीर चिन्तिका के रूप में हमारे समक्ष समुपस्थित है । आपके मधुर मिलन / सम्मिलन का प्रसंग श्रद्धेय गुरुवर्य उपाध्याय श्री पुष्कर मुनिजी म० सा० आदिगण के साथ मुझे मेरे पूज्या सद्गुरुणीजी स्व० परमविदुषी महासती श्री उमरावकुंवरजी म० सा०, विदुषी महासती श्री सुकनकुंवरजी म० सा० की आज्ञा से जोधपुर नगरी में सम्प्राप्त हुआ | आपकी स्नेहमयी स्मृतियां आज भी मेरे दिल - दिवारों पर चमक रही है । आपके जीवन में अन्य अनेक गुणों के साथ निर्भयता एवं स्पष्टवादिता का एक विशेष गुण है । सत्यवार्ता को कहने में आप कभी हिचकि नाती नहीं । आपकी मधुर एवं ओजस्वी वाणी का प्रभाव प्रत्येक मानस पर गहरा पड़ता है । जिन
SR No.012024
Book TitleSadhviratna Pushpvati Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1997
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
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