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________________ 'जंबाइदं वच्चामेलियं' आदि १४ प्रकार की ज्ञान की आशातना से बचना भी ज्ञान-विनय है। सूरि (आचार्य) -विनय पूर्वोक्त चार प्रकार से आचार्य का विनय करना आचार्य-विनय है। आचार्य संघ में आचारपक्ष की रक्षा करता है। स्वयं धर्माचरण करता है और दूसरों को भी धर्माचरण में प्रेरित करता है। स्थविर-विनय स्वयं धर्मपालन में स्थिर रह कर जो साधु-समुदाय को धर्मपालन में स्थिर रखता है, वह स्थविर कहलाता है। यदि कोई साधु-साध्वी अपने धर्माचरण या व्यापक धर्म-विचार में शिथिल होने लगता है तो ये उसे दृढ़ करते हैं । वृद्ध या अनुभवी व्यक्तियों की तरह ये साधु-साध्वियों को सुधारने का प्रयत्न करते हैं। अत: ऐसे स्थविरों का पूर्वोक्त चारों प्रकार से विनय करना स्थविर-विनय है। उपाध्याय-विनय उपाध्याय संघ में ज्ञानपक्ष के रक्षक होते हैं । शास्त्रों के पाठों को सुरक्षित रखते हैं। शास्त्र के अगाधज्ञान में गोते लगा कर साधु-साध्वियों एवं श्रावक-श्राविकाओं को वह ज्ञानरत्न देते हैं। उपाध्याय साधु-साध्वियों को शास्त्र का सामान्य अर्थसहित पाठ पढ़ाते हैं, इसलिए पाठक भी कहलाते हैं। आचार्य उस पर फिर विश्लेषणपूर्वक सामाजिक अनुभव की गहराई के साथ व्याख्या करते हैं । जैसे अध्यापक पुस्तक पढ़ाता है, प्राध्यापक (प्रोफेसर) उस पुस्तक के पाठ की विस्तृत व्याख्या एवं गंभीर विश्लेषण करके समझाता है, वैसे ही उपाध्याय और आचार्य क्रमश: करते हैं । ऐसे उपाध्यायों का विनय करना उपाध्याय-विनय तप है। गणी-विनय गणी आचार्य के नीचे का दर्जा है । इसे प्रवर्तक भी कहते हैं। साधुओं के जितने भी नित्य कर्म हैं, उन सबकी व्यवस्था गणो करते हैं । गणी सबको अपने-अपने कर्तव्य में लगाते हैं। जो जिस कार्य के योग्य होता है, उसे वही कार्य सौंपते हैं । आहार लाने वाले को आहार लाने में, वैयावृत्य (सेवा) करने वाले को वैयावृत्य करने में और अन्य काम के योग्य साधु को अन्य काम विनय के प्रकार २९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012023
Book TitleVijyanandsuri Swargarohan Shatabdi Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNavinchandra Vijaymuni, Ramanlal C Shah, Shripal Jain
PublisherVijayanand Suri Sahitya Prakashan Foundation Pavagadh
Publication Year
Total Pages930
LanguageHindi, English, Gujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size22 MB
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