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________________ चिकागों सर्वधर्म परिषद के निमित्त जैनाचार्य श्रीमद् विजयानंद सूरि को श्री वीरचंद राघवजी गांधी के द्वारा पाश्चात्य देशों में जैनधर्म का सन्देश पहुंचाने का अवसर मिला और विश्व रंगमंच पर जैन धर्म को स्थापित करने का सुयोग प्राप्त हुआ। साथ ही साथ पाश्चात्य विद्वानों का ध्यान जैन धर्म के तत्वों की ओर भी आकर्षित हुआ । अमेरिका में श्री वीरचन्द भाई की वहां के पादरियों, सामान्य जनता तथा प्रेस ने मुक्त कंठ प्रशंसा की । श्रीर ब. शेरमान जो कि संयुक्त राज्य अमेरिका के सर्किट कोर्ट में एक महत्वपूर्ण अधिकारी थे उन्होंने निम्न भावपूर्ण शब्दों में अपनी भावना व्यक्त की है । "It has rarely, if ever, been my good fortune to meet a man whose reading and culture have been so varied and who with all has so weet sincere and teachable a spririt as Mr. Gandhi" अमेरिका, इगंलेण्ड और यूरोपीय देशों की यात्रा से लौटन के पश्चात् वे धर्म और सामाजिक सेवा में लग गए और उन्होंने अपने सोलिसिटर के व्यवसाय को एक प्रकार से तिलांजलि ही दे दी और अपना सम्पूर्ण समय जैन दर्शन और समकालीन दर्शनों के गहन अध्ययन के लिये देने का निश्चय कर लिया । बम्बई में उन्होंने जैन धर्म के सिद्धान्तों के प्रचार प्रसार के लिये ‘श्री हेमचन्द्राचार्य क्लास' की स्थापना की। यहां उन्होंने जैन धर्म के अत्यन्त गूढ विषय कर्म सिद्धान्त और निर्वाण सिद्धान्त पर अनेकों भाषण किये। आर्य समाज, बुद्धिवर्धक समाज और थियोसोफीकल सोसायटी ने उन्हें अपने यहां भाषण कर देने के लिये ससम्मान आमंत्रित किया । इसी बीच उनके अमेरिकी मित्रों ने फिर उन्हें अमेरिका आने के लिये आग्रह किया ताकि वे जैन धर्म व उसके सिद्धान्तों के बारे में और अधिक समझा सके। उन्होंने जैन धर्म के व्यापक हित में निर्णय लिया कि उन्हें इस आमंत्रण को स्वीकार कर लेना चाहिए और सन् १८९६ में ही वे फिर अपने परिवार के साथ अमेरिका चले गये । अपने द्वितीय प्रवास में उन्होंने अपना समय अमेरिका और इंग्लेण्ड में इस प्रकार बांटा कि पहले छ: महीने तक वे अमेरिका में जैन धर्म का प्रचार करने हेतु रहे तो शेष छ: महीने उन्होंने इंग्लेण्ड में इस कार्य हेतु अर्पण किये । इंग्लैण्ड में रहते हुए उन्होंने कानून की सर्वोच्च उपाधि " बार एट लॉ" प्राप्त की पर कानून के स्थान पर उन्होंने अपने धर्म को अधिक महत्व दिया। वे अपने धर्म के ही बेरिस्टर बने रहे । उन्होंने फ्रांस जर्मनी तथा अन्य यूरोपीय देशों की भी यात्रा की और वहाँ जैन धर्म पर अनेकों व्याख्यान किये । श्री वीरचंद गांधी चौदह भाषाओं के ज्ञाता थे । उन्होंने वेदान्त तथा बौद्ध धर्म का भी गहन श्री विजयानंद सूरि स्वर्गारोहण शताब्दी ग्रंथ ३९४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012023
Book TitleVijyanandsuri Swargarohan Shatabdi Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNavinchandra Vijaymuni, Ramanlal C Shah, Shripal Jain
PublisherVijayanand Suri Sahitya Prakashan Foundation Pavagadh
Publication Year
Total Pages930
LanguageHindi, English, Gujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size22 MB
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