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________________ eloquence and piety But it is safe to say that no one of oriental scholars was listened with greater interest than the young layman of the Jain Community as he declared the ethics and philosophies of his people” भावार्थ:- “कई एक प्रसिद्धि हिन्दू विद्वान, दार्शनिक तथा धार्मिक नेताओं ने कान्फ्रेंस में भाग लिया और अपने भाषण किये। उनमें से कुछ एक विद्वान तो अपनी विद्वत्ता, वाग्मिता तथा पवित्रता में किसी भी जाति के बड़े से बड़े विद्वान के साथ टक्कर ले सकते थे। पर यह बात निश्चय से कही जा सकती है कि जिस अभिरुचि से इस जैन नवयुवक का जैन तत्वज्ञान और आचार संबंधी भाषण सुना गया, उस तरह का किसी भी और पूर्वीय विद्वान का नहीं सुना गया।" __ श्री वीरचंद भाई दो वर्ष तक अमेरिका में रहे और उन्होंने अमेरिका के प्रसिद्ध नगरों यथा बोस्टन, न्यूयार्क और वाशिंगटन आदि शहरों में ५३५ व्याख्यान किये। कई व्याख्यानों में जनता की उपस्थिति हजारों में रही। इससे निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि अमेरिकी जनता ने उन्हें कितनी शांति और रुचि से सुना। जैन धर्म की शिक्षा के लिये श्रीगांधी ने अमेरिका में पाठशालायें स्थापित की। वाशिंगटन में “गांधी फिलासफिकल सोसायटी की स्थापना हुई। उनके उपदेशों से प्रभावित होकर बहुत से व्यक्तियों ने माँस भक्षण का त्याग कर दिया। कितने ही व्यक्तियों ने ब्रह्मचर्य अंगीकार किया। अनेकों ने श्रद्धापूर्वक जैन धर्म को मानना प्रारंभ किया । अमेरिका में जैन धर्म की सफलता के झंडे गाडने के पश्चात् श्री वीरचन्द भाई यूरोपीय देशों की यात्रा पर निकल पड़े। सन् १८९५ में रॉयल एशियाटिक सोसाटी के प्रबन्ध में लार्ड मारेल की अध्यक्षता में इंग्लेण्ड में भाषण किये। इसी प्रकार फ्रांस और जर्मनी में भी अनेक स्थानों पर उन्होंने विद्वतापूर्ण भाषण दिये। जुलाई १८९६ में वे वापिस बम्बई लौटे । भारत भूमि पर लौटने के उपरान्त उनका विद्वानों और वीरोचित सम्मान किया गया और विशाल मानव मेदिनी की उपस्थिति में उन्हें अभिनन्दन पत्र अर्पण किया गया । श्री वीरचन्द भाई बम्बई से सीधे चिकागों कान्फ्रेन्स का वृत्तान्त तथा अपनी अमेरिका और यूरोप यात्रा का लाभ अपने मुख से सुनाने के लिये अंबाला पहुंचे जहां पूज्य गुरुदेव श्री विजयानंद सूरि बिराज रहे थे। उन्होंने आचार्य श्री को बतलाया कि पाश्चात्य देशों की जनता सत्य ग्रहण एवं जानने के लिए किस प्रकार उत्कंठित है परन्तु उन्हें सत्य धर्म का उपदेश सुनाने वाला नहीं है। पाश्चिम में जैन धर्म एवं संस्कृति के सर्व प्रथम उद्घोषक : श्री वीरचन्द राघवजी गांधी ३९३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012023
Book TitleVijyanandsuri Swargarohan Shatabdi Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNavinchandra Vijaymuni, Ramanlal C Shah, Shripal Jain
PublisherVijayanand Suri Sahitya Prakashan Foundation Pavagadh
Publication Year
Total Pages930
LanguageHindi, English, Gujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size22 MB
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