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________________ भरी है। (आ) गद्य- गुरुकुल श्रेष्ठ आचार्य श्री विजयानंद सूरीश्वरजी महाराज ने हिन्दी गद्य को भी समृद्ध किया है। लाला बाबूराम जी ने आपके साहित्य को श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए सत्य ही कहा है कि, “उनकी रचनाएं जितनी विशाल, विद्वत्तापूर्ण और दार्शनिक है उनती ही सीधी-सादी, स्पष्ट, मधुर और मनोरंजक भी हैं।" गुरुदेव की श्रीलेखनी से निसृत गद्य साहित्य इस प्रकार है । (१) नवतत्त्व (२) जैनतत्त्वादर्श भाग-१,२ (३) अज्ञान तिमिर भास्कर (४) सम्यकत्व शल्योद्धार (५) जैनमत वृक्ष (६) चतुर्थ स्तुति निर्णय भाग १ तथा २ (७) जैन धर्म विषयक प्रश्नोत्तर (८) चिकागो प्रश्नोत्तर (९) तत्त्वनिर्णय प्रासाद (१०) ईसाई मत समीक्षा (११) जैन धर्म का स्वरूप । इत्यादि। प्रस्तुत लेख में जैनतत्त्वादर्श' का परिचय देने का विनम्र प्रयास है । न्यायाम्भोनिधि जैनाचार्य गुरुकुल शिरोमणि श्री विजयानंद सूरीश्वरजी महाराज के निरन्तर प्रखर चिंतन का यह ग्रंथाकार है । प्रस्तुत ग्रंथ दो भागों में प्रकाशित है। 'जैनतत्त्वादर्श' भाग- १ तथा 'जैनतत्त्वादर्श भाग- २ । इस महान रचना का प्रकाशन विक्रम संवत् १९४० में गुरुदेव के जीवन काल में ही हुआ था । आज जिसे राष्ट्र भाषा का सम्मान प्राप्त है ऐसी भारतीय जनमन को जोड़ने वाली पवित्र भारती गंगा सरिता समान सार्थक हिन्दी भाषा में इस रचना को शब्द देह प्राप्त हुआ। अनेक भाषाओं के अधिकारी विद्वान होते हुए भी गुरुदेव ने जैनतत्त्व, दर्शन को संस्कृत में न लिखते हुए आम जनता की लोक भोग्य, सहज, सरल, सुबोध हिन्दी भाषा के माध्यम से जिज्ञासुओं तक पहुंचाने का स्तुत्य प्रयत्न किया। इस महान पवित्र ग्रंथ सर्जक हिन्दी साहित्य के बहुमुखी प्रतिभा सम्पन्न साहित्यकार भारतेन्दु हरिशचंद्रजी के समकालीन थे। भारतेन्दुजी के द्वारा प्रणित प्रेरित हिन्दी साहित्य के नवनवोन्मेषी रूप में गद्य में लिखना पसंद किया। यह खेद की बात है कि हिन्दी साहित्य के इतिहास में इस युग पुरुष की साहित्य सेवा की स्वीकृति किसी ने नहीं की। प्रस्तुत ग्रंथ एक ऐसे महान ज्योतिर्धर के सार्थक परिश्रम का परिणाम है जो भावी जैन पीढ़ियों का रहबर है । इस महान ग्रंथ की रचना अपने आप में बहुत बड़ी उपलब्धि पूर्ण घटना है। इस ग्रंथ के प्रथम भाग में छह अध्याय तथा द्वितीय भाग में सात से बारह अर्थात् छह अध्याय हैं। कुल मिलाकर बारह अध्यायों में सारगर्भित बातें बताई गई हैं। इस रचना का साद्यंत अध्ययन आचार्य श्री विजयानंद सूरि एवं उनका प्रमुख ग्रन्थ 'जैनतत्वादर्श' ३७१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012023
Book TitleVijyanandsuri Swargarohan Shatabdi Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNavinchandra Vijaymuni, Ramanlal C Shah, Shripal Jain
PublisherVijayanand Suri Sahitya Prakashan Foundation Pavagadh
Publication Year
Total Pages930
LanguageHindi, English, Gujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size22 MB
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