SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 370
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ की यह स्नेहपूर्ण बात सुनकर यति असमंजस में पड़ गये । वे किंकर्तव्यविमूढ से खड़े रहे। उनकी समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करें। जिसे भरपेट गालियाँ दी। जिनकी बुराई करने में कोई कसर न छोड़ी वही व्यक्ति आज उतने ही स्नेह से कुशल क्षेम पूछ रहा था । आचार्य श्री विजयानंद सूरि म. की महानता के आगे यति जी का मस्तक झुक गया । उनकी सारी कटुता, मलीनता धुल गई। वे चरणों में गिर पड़े और क्षमायाचना की । आचार्य श्री विजयानंद सूरि म. ने श्रावकों को उपदेश देकर यति जी के आहार पानी की व्यवस्था करा दी । निर्ग्रन्थ जैन साधु का एक नाम निर्ग्रन्थ भी है। इसका अर्थ है, जैन साधु बिना किसी ग्रन्थी के होते हैं । अर्थात् स्वतंन्त्र | उन्हें दुनिया की कोई ताकत शासित नहीं कर सकती। विजयानंद सूरि म. इसके उत्कृष्ट उदाहरण हैं । उनके जीवन के दो प्रसंग इसके साक्षी हैं । अनेक आगमों के गहन अध्ययन से उन्हें यह प्रतित हो गया था कि जिन प्रतिमा पूजन शास्त्र सम्मत और मुंह पर पट्टी बाँधना अशास्त्रीय है। अतः इस विषय पर कभी कभी चर्चा चल पड़ती थी । इसी प्रकार की चर्चा चल रही थी कि एक कनिराम नाम के उनके गुरुभाई ने कहा :लगता है अब आपको अपने गुरु एवं दादा गुरु के वचनों पर श्रद्धा नहीं रही। इस पर विजयानंद सूरि म. ने कहा :- मैं गुरु का बंधा हुआ नहीं हूँ, मुझे तो भगवान महावीर की सच्ची वाणी का प्रचार करना है । मैं सच्चाई या वास्तविकता का त्याग करने के लिए किसी भी परिस्थिति में तैयार नहीं हूँ । संसार की कोई भी शक्ति मुझे जैन धर्म के सत्य विचारों के प्रचार से रोके नहीं सकती । दूसरा प्रसंग सूरत का यशस्वी चातुर्मास सम्पन्न कराकर वे बड़ौदा पधारे थे। यहां कुछ दिन रुके । लोगों ने भरपूर लाभ उठाया। एक दिन प्रवचन के अन्त में अपना कार्यक्रम लोगों को बताया और कहा कि कल शाम विहार करके छाणी जाएगें। उसी दिन शाम को कलकत्ता के एक अग्रणी बाबू बद्रीदास जिन्होंने श्री विजयानंद सूरि म. की विद्वता और प्रवचन प्रभावकता के विषय में बहुत कुछ सुन रखा था । वे उनके चरणों में उपस्थित हुए और विनती की :- आपकी विद्वता के विषय में मैंने बहुत कुछ सुना है अगर कल का दिन आप यहाँ रुकें तो हमें भी प्रवचन श्रवण का लाभ मिलेगा। श्री विजयानंद सूरिः जीवन प्रसंग Jain Education International For Private & Personal Use Only ३११ www.jainelibrary.org
SR No.012023
Book TitleVijyanandsuri Swargarohan Shatabdi Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNavinchandra Vijaymuni, Ramanlal C Shah, Shripal Jain
PublisherVijayanand Suri Sahitya Prakashan Foundation Pavagadh
Publication Year
Total Pages930
LanguageHindi, English, Gujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy