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________________ शास्त्री रामचंद्र दीनानाथ जैन मुनियों को प्राकृत पढ़ाते थे। इन्होने विजयानंद सूरि म. से अनुयोगद्वार आदि सूत्र पढ़ाने की विनती की थी। पर उसकी इस विनती को अनुचित जानकर अस्वीकार कर दिया था। उन्होंने कहा :- शास्त्री रामचन्द्र दीनानाथ को आगम का ज्ञान नहीं के बराबर है। आपने किसी गुरु से अध्ययन ही नहीं किया। सामान्य पंडित आपको आगम क्या पढ़ा सकता है? अगर आप विनय पूर्वक किसी त्यागी गुरु से पढ़ते तो यह परिणाम न आता। स्थानांग सूत्र आदि का ज्ञान केवल अक्षरों के अर्थ रट लेने से नहीं आता। आपने उत्सर्ग और अपवाद मार्ग को समझा नहीं है । सप्तभंगी और नय निक्षेप, विधिसूत्र, उपदेशसूत्र, विवरणसूत्र आदि का आपने गम्भीरता पूर्वक अध्ययन नहीं किया है। पहले आप आगमों का तलस्पर्शी अध्ययन कीजिए उसके बाद आपको वास्तविकता का ज्ञान होगा। जैसा समय है उसके अनुरुप आज भी सच्चे साधु हैं। आज भी साधुता है। विजयानंद सूरि म. की यह बात सुनकर शान्तिसागर जी को कुछ कहते न बना । वे निरूत्तर हो गए। वशीकरण एक मंत्र है तज दे वचन कठोर उस समय जैन समाज पर यतियों का बहुत अधिक प्रभाव था। जादू-टोने-टोटके, मन्त्र-तन्त्र में पूरा यति समाज डूबा हुआ था। सच्चे श्रमणों का अभाव सा हो गया था । त्याग, तप, साधना, आराधना पर अंधकार छा गया था। उस समय एक प्रबल प्रतापी सूर्य का उदय हुआ जिससे समग्र भू-मण्डल प्रकाशित हो उठा। वे थे आचार्य विजयानंद सूरि म.। उनके आने से यतियों का प्रभाव घटने लगा। यहाँ तक कि उन्हें रोटी-पानी भी कठिनाई से उपलब्ध होने लगा। स्वभावत: यति समाज उनसे द्वेष करने लगा। __पालीताणा के एक प्रौढ़ यति की भी यही स्थिति हुई । जब आचार्य विजयानंद सूरि म. यहाँ पधारे । सारे लोग उन्हीं के पास दर्शन करने और प्रवचन सुनने के लिए आने लगे । यति जी की रोटी बन्द हो गई। अब वह गली गली और घर घर जाकर विजयानंद सूरि म. की निन्दा करता। उन्हें भरपेट गालियाँ देता । सारा दिन जितनी उनकी बुराई हो सकती वह करता रहता था। विजयानंद सूरि म. यह अच्छी तरह जानते थे। एक दिन वे अपने मुनि मण्डल सहित भगवान आदिनाथ के दर्शन कर लौट रहे थे। रास्ते में उन्हें यति जी दीख पड़े। इस समय भी वे उसी कार्य में संलग्न थे । आचार्य विजयानंद सूरि म. उनके पास गए और प्रेम से पीठ सहलाते हुए कहा :- यतिजी आप को किसी ने भरमाया है। गालियाँ बकना यति धर्म को शोभा नहीं देता? अगर आप को आहार पानी की कठिनाई हो तो हमें बताइए । हमें अपना ही समझीये । ३१० श्री विजयानंद सूरि स्वर्गारोहण शताब्दी ग्रंथ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012023
Book TitleVijyanandsuri Swargarohan Shatabdi Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNavinchandra Vijaymuni, Ramanlal C Shah, Shripal Jain
PublisherVijayanand Suri Sahitya Prakashan Foundation Pavagadh
Publication Year
Total Pages930
LanguageHindi, English, Gujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size22 MB
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