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________________ इस प्रतिनिधि मंडल ने उन्हें विनम्रता पूर्वक प्रार्थना की कि आप हमारे स्थानकवासी आचार परंपरा का ही पालन करें । सम्प्रदाय विरुद्ध ऐसा कोई कार्य न करें जिससे हमारे सम्प्रदाय में विभाजन हो। पूज्य श्री आत्मारामजी महाराज ने उनकी सभी बातें, सभी तर्क और समस्याएं सुनी और फिर अपनी बातें, अपने तर्क और प्रमाण दिए। उन्होंने अपनी बात इतने प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत की कि आधे श्रावक उसी समय उनके विचारों के बन गए। जहां सत्यरूपी सूर्य का अरुणोदय हो गया हो वहां असत्य रूप अंधकार कैसे और कहां तक टिक सकता है? इस घटना से अमरसिंहजी बौखला गए। थोड़ी सी मानसिक स्वस्थता थी, वह भी चली गई। दूसरे कदम के रूप में उन्होंने एक मेजरनामा- आदेश पत्र तैयार किया। जिसमें लिखा था कि 'जो कोई जिन-प्रतिमा में श्रद्धा रखता है, प्रतिमा-पूजन का आदेश देता है, मुंह पर मुंहपत्ति बांधने का विरोध करता है और बाईस अभक्ष्य सेवन न करने का व्रत धारण करवाता है, उस साधु को हमारे स्थानकवासी सम्प्रदाय से बहिष्कृत किया जाता है। इस आदेश पत्र को सभी वरिष्ठ साधुओं के हस्ताक्षर लेने के लिए भेज दिया गया। उसमें सर्वप्रथम हस्ताक्षर अमरसिंहजी के थे। आत्मारामजी के गुरु जीवनरामजी को भी उस पर हस्ताक्षर करवाए गए। इस पत्र को लेकर दो मुनि आत्मारामजी की सेवा में उपस्थित हुए और डरते हुए उसे आगे बढ़ाया। आदेश-पत्र पढ़कर वे समझ गए कि यह पत्र केवल मेरे लिए ही जारी किया गया है। उन्होंने पत्र लेकर आने वाले आगन्तुक मुनि से कहा- यदि मैं इस पर हस्ताक्षर न करूं तो? 'तो सम्प्रदाय से बहिष्कृत कर दिए जाओगे।' आने वाले मुनि ने स्पष्टता की। यह सुनकर आत्मारामजी ने सिंह गर्जना की- 'तो जाओ, अपने गुरु अमरसिंहजी से कह दो मैं हस्ताक्षर नहीं करता । यदि मुझे बहिष्कृत करना चाहते हैं तो बड़ी प्रसन्नता कर दें । मैं डरता नहीं हूं।' अमरसिंहजी का यह उपाय भी सफल नहीं हुआ। फिर तीसरे कदम के रूप में उन्होंने पंजाब और राजस्थान के सभी संघों को पत्र लिख दिए कि आत्मारामजी को स्थानकवासी सम्प्रदाय से बहिष्कृत कर दिया गया है। यदि वे आपके नगर में आए तो उन्हें न पानी दे, न श्रीमद् विजयानंद सूरि: जीवन और कार्य २७३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012023
Book TitleVijyanandsuri Swargarohan Shatabdi Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNavinchandra Vijaymuni, Ramanlal C Shah, Shripal Jain
PublisherVijayanand Suri Sahitya Prakashan Foundation Pavagadh
Publication Year
Total Pages930
LanguageHindi, English, Gujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size22 MB
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