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________________ हुआ, एक विशाल वटवृक्ष का बीजारोपण हुआ जिसकी सघन छाया में श्री आत्म-वल्लभ-समुद्रइन्द्रादि परिवार आज गौरवान्वित है । क्रान्ति का अर्थ होता है- प्रचलित मान्यताओं, रूढ़ियों, अन्धविश्वासों के विरुद्ध स्वर ऊंचा करना और नए मूल्य स्थापित करना । मुनिप्रवर श्री आनन्द विजयजी म. सा. ने वैयक्तिक तथा सामाजिक जीवन में व्याप्त बुराइयों को चुनौती दी और उस मार्ग को पूरी गम्भीरता से प्रशस्त किया, जिस पर चलकर मानव शुद्ध एवं प्रबुद्ध बन सकता था। समाज की अहितकर रूढ़ियों को मिटाने के साथ-साथ अपने सच्चे श्रमण मार्ग की शास्त्रीय व्याख्याकर सबकी आँखें खोल दी, अहमदाबाद में श्री शांतिसागर जी की प्रवृत्तियों व उनके आचार-विचार देखकर आपके मन को अत्यंत आघात पहुंचा था, आपने श्रावक-श्राविका वर्ग के समक्ष 'आवश्यक सूत्र' का सम्यक् विवेचन किया तथा जैन साधु की आचार संहिता का उज्ज्वल चित्रण प्रस्तुत किया, जबकि बड़े बड़े साधु भी उनकी विद्वत्ता तथा प्रभाव के कारण आचार शिथिलता का विरोध नहीं कर पाते थे । श्रावकों के समक्ष शास्त्रार्थ में श्री शांतिसागर जी को परास्त कर आपने उनको भी आश्चर्य चकित कर दिया और श्रीसंघ को भी एक सही दिशा दी । भारत एक चिन्तनशील राष्ट्र है और उसकी विशेषता है - आत्म-साधना । उसकी विशिष्टता है- आध्यात्मिकता । सत्य तो यह है कि भारतीय सन्त अनादिकाल से आत्मा और परमात्मा को खोजने के लिए प्रयत्नशील है और अनेक सन्तों ने इसमें सफलता भी पाई है । भारतीय संस्कृति तथा दर्शन की प्रमुख धारा जैन संस्कृति तथा दर्शन की तो अपनी अनोखी मौलिकता रही है । इसका तो लक्ष्य ही है सत्य का साक्षात्कार करना, सत्य को जीवन में उतारना और सत्य चिन्तन करना । यही कारण है कि पाश्चात्य विद्वान मनीषियों ने भी जैन धर्म, दर्शन व संस्कृति का गहन चिन्तन-मनन व अवगाहन किया है। पूज्य आचार्य श्री विजयानन्द सूरीश्वरजी म. सा. ने पीटर्सन तथा डा. हार्नल आदि विदेशी विद्वानों का पदे पदे मार्गदर्शन किया था । पूज्य गुरुदेव अपने प्रवचनों में अपने लेखों में या शिकागो विश्व धर्म सम्मेलन में आप श्री के प्रतिनिधि श्री वीरचन्द राघव जी गांधी द्वारा जो बात कही गई, उसका उद्देश्य जैन धर्म की सार्वभौम सत्ता को पुनः स्थापित करना था । आपके हृदय में समाज में फैली कुरीतियां, अशिक्षा व अहंभाव के प्रति गहरी पीड़ा थी, इसीलिए अपने सर्वाधिक प्रिय आज्ञाकारी अनुशासित पट्टधर गुरु वल्लभ से आपने एक ही बात कही थी वल्लभ !ज्ञान के उपवन लगाना जगह जगह पाठशालाएं खुलवाना, जिससे देश की जनता विशेष रूप से जैन अज्ञानान्धकार से बाहर निकले । जब अज्ञानता दूर होगी तो लोगों में शास्त्रसम्मत धर्म और दर्शन समझने की शक्ति स्वतः आ जाएगी और वे प्रभु महावीर के बताए अनेकान्तवाद के सिद्धान्त का सम्यकरीत्या धार्मिक चेतना के Jain Education International अग्रदूत For Private & Personal Use Only २३९ www.jainelibrary.org
SR No.012023
Book TitleVijyanandsuri Swargarohan Shatabdi Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNavinchandra Vijaymuni, Ramanlal C Shah, Shripal Jain
PublisherVijayanand Suri Sahitya Prakashan Foundation Pavagadh
Publication Year
Total Pages930
LanguageHindi, English, Gujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size22 MB
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