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________________ २. अचपल है । ३. दंभी नहीं है । ४. अकौतूहली - तमाशबीन नहीं है । ५. किसी की निंदा नहीं करता' है 1 ६. क्रोध आने पर उसे तत्काल भुला देता है, मन में नहीं रखता, शीघ्र शान्त हो जाता है । ७. मित्रों के प्रति कृतज्ञ रहता है । मित्रता निबाहना जानता है । ८. ज्ञान प्राप्त करने पर अहंकार नहीं करता । ९. किसी की स्खलना या भूल होने पर उसका तिरस्कार एवं उपहास नहीं करता । १०. . मित्रों पर क्रोध नहीं करता । सहाध्यायियों से झगड़ता नहीं । ११. मित्र के साथ अनबन होने पर भी उसके लिए भलाई की बात करता है। एकान्त में भी उनकी निंदा नहीं करता । १२. जो कलह या मारपीट नहीं करता । १३. जो स्वभाव से कुलीन और उच्च है । १४. बुरा कार्य करने में जिसे लज्जा अनुभव होती है । १५. जो अपने आपको संयत और शान्त रख सकता है । गुरूजनों के प्रति आदर व कृतज्ञता जैन शिक्षा पद्धति पर शिक्षार्थी के मानसिक गुणों के विकास में सर्वाधिक महत्व की बात है, गुरूजनों के प्रति कृतज्ञता तथा आदर भावना । दशवैकालिक सूत्र में बताया है जो सुकुमार राजकुमार उच्च कुलीन शिष्य गुरूजनों से लौकिक शिक्षा, शिल्प आदि सीखते हैं, गुरूजन उन्हें शिक्षाकाल में कठोर बंधन, ताडना, परिताप आदि देते हैं फिर भी शिष्य उनका सत्कार करते हैं, उन्हें नमस्कार करते हैं, तथा प्रसन्न करके उनके निर्देश के अनुसार वर्तन करते हैं। इस पर टिप्पण करते हुए आचार्य जिनदास गणि चूर्णि में स्पष्टीकरण करते हैं कि १. वसे गुरूकुले निच्चे जो गवं उवहाणवं । पियं करे पियंवाई से सिक्कं लघु मरिहहू - (उत्तरा . ११ / १४) २. उत्तराध्ययन- ११ / १०-१४ व्यक्तित्व के समग्र विकास की दिशा में 'जैन शिक्षा प्रणाली की उपयोगिता' Jain Education International - For Private & Personal Use Only १५३ www.jainelibrary.org
SR No.012023
Book TitleVijyanandsuri Swargarohan Shatabdi Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNavinchandra Vijaymuni, Ramanlal C Shah, Shripal Jain
PublisherVijayanand Suri Sahitya Prakashan Foundation Pavagadh
Publication Year
Total Pages930
LanguageHindi, English, Gujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size22 MB
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