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________________ गौतम ने उदक पेढाल को सम्बोधित करके कहा-'भद्र ! किसी श्रमण-निग्रंथ या गुरूजन से धर्म का एक भी पद, एक भी वचन सुना हो, अपनी जिज्ञासा का समाधान पाया हो, या योग-क्षेम का उत्तम मार्ग दर्शन मिला हो तो, क्या उनके प्रति कुछ भी सत्कार सम्मान व आभार प्रदर्शित किये बिना उठकर चले जाना उचित है?' ___ उदक पेढाल ने सकुचाते हुए पूछा-आप ही कहिए, उनके प्रति मुझे कैसा व्यवहार करना चाहिए? गणधर गौतम ने कहा—'एगमपि आट्टियं सुवयणं सोच्चा.. . आढाई परिजाणेति वंदंति नमसंति...। गुरूजनों से एक भी आर्य वचन सुनकर उनके प्रति आदर और कृतज्ञता का भाव व्यक्त करना चाहिए । यही आर्य धर्म है। गौतम का यह उपदेश और स्वयं गौतम की जीवनचर्या से गुरू शिष्य के मधुर श्रद्धापूर्ण सम्बन्ध और प्रश्न उत्तर की शैली तथा उत्तर प्रदाता, ज्ञानदाता गुरू के प्रति कृतज्ञ भावना प्रकट करने से एक आदर्श पद्धति पर प्रकाश पड़ता है। आज के संदर्भो में भी इस प्रश्नोत्तर पद्धति और कृतज्ञ भावना की नितांत उपादेयता है । __ वास्तव में गुरूजनों की भक्ति और बहुमान तो विनय का एक आवश्यक अंग है । दूसरा अंग है-शिक्षार्थी की चारित्रिक योग्यता और व्यक्तित्व की मधुरता। कहा गया है-गुरूजनों के समीप रहने वाला, योग और उपधान (शास्त्र अध्ययन के साथ विशेष तपश्चरण) करने वाला, सबका प्रिय करने वाला और सबके साथ प्रिय मधुर बोलने वाला, शिक्षा एवं ज्ञान प्राप्त कर सकता है। इसी प्रसंग में शिक्षार्थी की १५ चारित्रिक विशेषताओं पर भी विचार किया गया है जिनके कारण वह सुविनीत कहा जाता है और गुरूजनों के समीप रहकर शिक्षा प्राप्त कर सकता है। संक्षेप में वे इस प्रकार है १. जो नम्र है। १. उत्तराध्ययन- २२-२३ २. देखिए भगवती सूत्र के प्रसंग ३. सूत्र कृतांग २/७/३७ १५२ श्री विजयानंद सूरि स्वर्गारोहण शताब्दी ग्रंथ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012023
Book TitleVijyanandsuri Swargarohan Shatabdi Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNavinchandra Vijaymuni, Ramanlal C Shah, Shripal Jain
PublisherVijayanand Suri Sahitya Prakashan Foundation Pavagadh
Publication Year
Total Pages930
LanguageHindi, English, Gujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size22 MB
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