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________________ ८. नियुक्तियों की सत्ता वलभी वाचना के पूर्व थी, तभी तो नन्दीसूत्र में आगमों की निर्युक्तियों का उल्लेख है । पुनः अगस्त्यसिंह की दशवैकालिकचूर्णि के उपलब्ध एवं प्रकाशित हो जाने पर यह बात पुष्ट हो जाती है कि आगमिक व्याख्या के रूप में नियुक्तियां वलभी वाचना के पूर्व लिखी जाने लगी थी। इस चूर्णि में प्रथम अध्ययन की दशवैकालिकनियुक्ति की ५४ गाथाओं की भी चूर्णि की गई है। यह चूर्णि विक्रम की तीसरी-चौथी शती में रची गई थी। इससे यह तथ्य सिद्ध हो जाता है कि निर्युक्तियां भी लगभग तीसरी-चौथी शती की रचना है 1 ज्ञातव्य है कि निर्युक्तियों में भी परवर्ती काल में पर्याप्त रूप से प्रक्षेप हुआ है, क्योंकि अगस्त्यसिंह चूर्णि में दशवैकालिक के प्रथम अध्ययन की चूर्णि में मात्र ५४ निर्युक्ति गाथों की चूर्णि हुई है, जबकि वर्तमान में दशवैकालिकनिर्युक्ति में प्रथम अध्ययन की नियुक्ति में १५१ गाथाएं है । अत: निर्युक्तियां आर्यभद्रगुप्त या गौतमगोत्रीय आर्यभद्र की रचनायें हैं । इस सम्बन्ध में एक आपत्ति यह उठाई जा सकती है कि निर्युक्तियां वलभी वाचना के आगमपाठों के अनुरूप क्यों है ? इसका प्रथम उत्तर तो यह है कि निर्युक्तियों का आगम पाठों से उतना सम्बन्ध नहीं है, जितना उनकी विषयवस्तु से है और यह सत्य है कि विभिन्न वाचनाओं में चाहे कुछ पाठ-भेद रहे हों किन्तु विषयवस्तु तो वही रही है और निर्युक्तियां मात्र विषयवस्तु का विवरण देती है । पुन: नियुक्तियां मात्र प्राचीन स्तर के और बहुत कुछ अपरिवर्तित रहे आगमों पर है, सभी आगम ग्रन्थों पर नहीं है और इन प्राचीन स्तर के आगमों का स्वरूप निर्धारण तो पहले ही हो चुका था । माथुरीवाचना या वलभी वाचना में उनमें बहुत अधिक परिवर्तन नहीं हुआ है । आज जो निर्युक्तियां हैं वे मात्र आचारांग, सूत्रकृतांग, आवश्यक, उत्तराध्ययन, दशवैकालिक, दशाश्रुतस्कन्ध व्यवहार, बृहत्कल्प पर है ये सभी ग्रन्थ विद्वानों की दृष्टि में प्राचीन स्तर के हैं और इनके स्वरूप में बहुत अधिक परिवर्तन नहीं हुआ है । अत: वलभीवाचना से समरूपता के आधार पर नियुक्तियों को उससे परवर्ती मानना उचित नहीं है । उपर्युक्त समग्र चर्चा से यह फलित होता है कि नियुक्तियों के कर्त्ता न तो चर्तुदश पूर्वधर आर्य भद्रबाहु है और न वाराहमिहिर के भाई नैमित्तिक भद्रबाहु । यह भी सुनिश्चित है कि निर्युक्तियों की रचना छेदसूत्रों की रचना के पश्चात् हुई है । किन्तु यह भी सत्य है कि नियुक्तियों का अस्तित्व आगमों की देवर्द्धि के समय हुई वाचना के पूर्व था । अतः यह अवधारणा भी भ्रान्त है कि निर्युक्तियां विक्रम की छठवीं सदी के उत्तरार्द्ध में निर्मित हुई हैं। नन्दीसूत्र एवं पाक्षिकसूत्र की रचना के पूर्व आगमिक निर्युक्तियां अवश्य थी । अब यह प्रश्न उठता है कि यदि नियुक्तियों के कर्त्ता श्रुत- केवली पूर्वधर प्राचीनगोत्रीय श्री विजयानंद सूरि स्वर्गारोहण शताब्दी ग्रंथ १०८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012023
Book TitleVijyanandsuri Swargarohan Shatabdi Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNavinchandra Vijaymuni, Ramanlal C Shah, Shripal Jain
PublisherVijayanand Suri Sahitya Prakashan Foundation Pavagadh
Publication Year
Total Pages930
LanguageHindi, English, Gujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size22 MB
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