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________________ ६७ विचारवंतों के दृष्टि में हुआ तो हमारे गांवके पिताजी और अन्य लोग बैलगाडी लेकर दर्शनार्थ पधारे सो महाराज के पास जाकर नियम व अन्य गृहस्थों को त्याग व्रत दिलवाए । दुबारा दर्शन देहली में हुए । यह मुझे बहुत याद है। चा. च. आचार्य १०८ श्री महावीरकीर्ति महाराज के साथ में आचार्य श्री शांतिसागरजी महाराज के गांव में भी पधारे। भोजगांव में जाकर के आचार्य महाराज की जन्मभूमि के दर्शन किए व अन्य गावों में जाकर के जहाँ पर महाराज तप ध्यान करते थे उन गुफाओं के दर्शन किए जिन गुफाओं में महाराज के उपर एक सर्प का उपसर्ग हुआ था। उस गुंफा को भी देखा। मैं श्री १००८ श्री २४ तीर्थंकर भगवान् से प्रार्थना करता हूँ कि आचर्य महाराज स्वर्गों में जहाँ कहीं भी हो जल्दी से आकर इस पंचम काल में जैन धर्म का झण्डा फहराएँ जैसा पहले तीर्थप्रवर्तकों ने फहराया था, और हम लोगों को सुबुद्धि देवे । धन्य वे महात्मा जिन्हों ने अपनी तपस्या से स्वयं को कृतार्थ किया। आचार्य श्री के चरणों में सविनय श्रद्धांजलि समर्पित हों। क्षु. रतनसागर चातुर्मास, जयपूर आचार्य शिरोमणि ! मुझे आपका पुण्यमयी दर्शन जयपूर खानिया में जब आपका चातुर्मास था उस समय हुआ। मैं स्वयं उस समय करीब २५ वर्ष का था। मेरी यह आंतरिक भावना है कि आप जैसी निर्विकारता-वीतरागता बनी रहे उसमें ही परमार्थता है । आपके चरणों में अत्यंत भक्तिभाव पूर्वक आदर पूर्वक नमोस्तु । क्षुल्लक सुदर्शन सागर लाडनूं (राजस्थान) अपूर्व प्रकाश स्व० पूज्य आचार्य महाराजजी के स्मृतिमें प्राचीन शास्त्रों का जीर्णोद्धार आदि की योजना सराहनीय है । प्रकाशन की सफलता चाहता हूँ। पू० आचार्य महाराजजी से समाज को जो प्रकाश प्राप्त हुआ है वह अपूर्व है । आचार्य श्री के प्रति सादर श्रद्धांजलि वीतराग के वरवचन परम शास्त रसपान । पीवे प्रेम बटायके पावे केवल ज्ञान ॥ जयपूर खानिया क्षुल्लक वर्धमानसागर शिष्य श्री १०८ आ. महावीरकीर्तिजी महाराज Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012022
Book TitleAcharya Shantisagar Janma Shatabdi Mahotsav Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinwani Jirnoddharak Sanstha Faltan
PublisherJinwani Jirnoddharak Sanstha Faltan
Publication Year
Total Pages566
LanguageHindi, English, Marathi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size14 MB
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