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________________ ६६ आ. शांतिसागरजी जन्मशताब्दि स्मृतिग्रंथ वस्तु है। थोडा भी अमत रस का पान आनन्द का कारण होता है। अगर आपका अवतार भारत में न होता तो आज मुनि धर्म और मुनिमार्ग प्रचलित न होता। हम जैसे अल्पज्ञ क्या वर्णन करे । आपके स्मृति में कृतज्ञता पूर्वक कोटीश: प्रणाम करके आपके चरणों में आदरांजलि अर्पण करते हैं । त्रिवार नमोस्तु । महान् आत्मा श्रीमत् परमपूज्य गुरुवर को श्रद्धांजलि किन शब्दों में अर्पित करूं? निकृष्ट पंचमकाल में पूरा विश्व अधिभौक्तिक चकाचौंध में व्याकूल है । आत्मा से पराङ्मुख है । विषय कषायों में घिरा हुआ है, स्वपर भेद विज्ञान की बात से कोसों दूर है ऐसे काल खण्ड से आचार्य श्री का जीवन अध्यात्म क्षेत्रमें दैदीप्यमान सूर्य के समान ही था। युग पुरुष महाराज की साधना सातिशय थी। अमूर्त त्याग भाव महाराज की चर्या में मूर्तिमंत बिखरता हुआ प्रतीत होता था । स्वात्म चिंतामें सदा सावधानता, परोपकारमें सहजता, प्रवृत्तिमें वीतरागता, मूलोत्तर गुणों में नैष्ठिकता, समीचीन व्यवहार में निडरता आदि सातिशय विशेषताओं का सहजहि स्मरण हो जाता है। ___आपके चरणों की भक्ति भविष्य में भी सदा बनी रहे । आपकी महान् आत्मा को त्रिवार नमोस्तु । चौसामा, तारंगाजी ऐल्लक भावसागर पुनीत चरणों में कोटिशः प्रणाम आर्यिका १०५ विशुद्धमती माताजी आपका धैर्य निर्भयवृत्ति और गंभीरता के विषय में अनेक पुण्य कथाएँ सुनी है । आपने दिगंबरी दीक्षा लेने के उपरान्त चार पाँच दिन तक लोगों को आहार विधि का परिज्ञान न होने के कारण आपको आहार का लाभ नहीं मिला। किन्तु धन्य है आपको जो आपने दिगंबररूपी नभोमंडल पर सूर्यसदृश उदित होकर अपनी रत्नत्रयरूपी किरणों से भ्रष्टमार्गी भव्यों को समीचीन मार्ग दिखाकर मोक्षमार्ग में लगाया। अन्त में त्यागीयों से यही आशीर्वाद प्राप्त हो कि आत्मशान्ति प्राप्त हो, रत्नत्रय की वृद्धि हो, स्त्रीपर्याय का नाश हो और अन्त में समाधिपूर्वक मरण हो।। आचार्यवर ! आपके परम पुनीत चरणों में कोटिशः नमन ! धन्य वे महात्मा श्री. प. पूज्य योगीन्द्र चूडामणि सिद्धांत पारंगत धर्मसाम्राज्यनायक विश्ववंद्य चारित्र चक्रवर्ती श्री १०८ आचार्य शांतिसागरजी महाराज जी से भेंट पहले इटावा या मुरैना में हुई । जब महाराजजी का आगमन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012022
Book TitleAcharya Shantisagar Janma Shatabdi Mahotsav Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinwani Jirnoddharak Sanstha Faltan
PublisherJinwani Jirnoddharak Sanstha Faltan
Publication Year
Total Pages566
LanguageHindi, English, Marathi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size14 MB
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