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________________ ३५९ आयुर्वेद जगत् में जैनाचार्यों का कार्य आत्मा के सम्पूर्ण कर्मों के क्षय से उत्पन्न, अत्यद्भुत, आत्यंतिक व परमश्रेष्ठ, विद्वानों के द्वारा सदा अपेक्षित जो अतींद्रिय परमानंद है वही पारमार्थिक स्वास्थ्य है। उस पारमार्थिक स्वास्थ्य को एवं उसके लिए परंपरा साधनभूत लौकिक स्वास्थ्य को प्राप्त करने का उपाय आयुर्वेद ग्रंथकारों ने, उसमें भी निर्दोष पद्धति को जैनायुर्वेद ग्रंथकारों ने प्रतिपादन किया है। व्यावहारिक स्वास्थ्य व पारमार्थिक स्वास्थ्य दोनों ही इस जीव को आवश्यक है । इस दृष्टि से आचार्य कुंदकुंद से लेकर आचार्य शांतिसागर तक के महर्षियों ने संसार के जीवों को स्वास्थ्य रक्षण का उपाय बताते हुए महान उपकार किया है । इस दिशा में अनेक अनुपम कृतियों को निर्माण कर आज के अध्ययन प्रेमियों को चिरऋणी बनाया है। परंतु आज उन ग्रंथोंको अध्ययन करनेवाले, दुर्लभ होगये हैं तो प्रयोग करनेवालों का तो अभाव ही है । इसलिए निकट भविष्यमें भगवान् महावीर का २५०० वा निर्वाण महोत्सव मनाने के लिए जैन समाज जा रहा है, उसमें मुख्यतः जैनायुर्वेद व जैन ज्योतिष ग्रंथों का प्रकाशन कर जिनवाणी की यथार्य सेवा करें । हमारी उपेक्षा यदि इसी प्रकार रही तो रही सही ज्ञान भंडार भी लुप्त हो जायगा, उनके अनेक रत्नों के दर्शन से हम वंचित हो जावेंगे। पीछे की पीढी के हाथ में पश्चात्ताप के सिवाय कुछ नहीं आवेगा । साय में उन प्राचीन महर्षियों के अनर्घ्य व महत्त्वपूर्ण कार्य देखते देखते नष्ट हो जावेंगे जिसका उत्तरदायित्व हमपर रहेगा । इस अपराध के लिए कहीं भी क्षमा नहीं हो सकेगी। इत्यलं विस्तरेण । आयुर्वेदो विजयतेतराम् । भद्रं भूयात् । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012022
Book TitleAcharya Shantisagar Janma Shatabdi Mahotsav Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinwani Jirnoddharak Sanstha Faltan
PublisherJinwani Jirnoddharak Sanstha Faltan
Publication Year
Total Pages566
LanguageHindi, English, Marathi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size14 MB
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