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________________ आयुर्वेद जगत् में जैनाचार्यों का कार्य ३५७ में भी जैन वैद्यक ग्रन्थों की रचना हुई है। केरळ की मलेयाली भाषा में भी वहां के विद्वानों ने वैद्यक ग्रन्थों की रचना की है । मलेयाल में आयुर्वेद के रस, रसायन, तैलादि का बहुत प्रचार है, तैलाभ्यंग की प्रक्रिया से कायाकल्प का प्रयोग आज के विद्वान भी वहां पर करते हैं, यह भुलाना नहीं चाहिये । वैद्यक और ज्योतिष दोनों विद्याओं का संगोपन मलेयाल में बहुत सावधानी के साथ किया गया है । इसके अलावा कन्नड ग्रन्थकारों ने भी वैद्यक और ज्योतिष सम्बन्धी अनेक ग्रन्थों का निर्माण किया है उनमें कई स्वतंत्र ग्रन्थ एवं कई तो संस्कृत ग्रन्थों के टीकात्मक ग्रन्थ हैं। उनका भी समुचित संशोधन, समुद्धार नहीं हो सका है। इस ओर समाज के चिंतकों को ध्यान देना चाहिये । पूज्यपाद का कल्याणकारक कन्नड में जगद्दल सोमनाथ कवि ने पूज्यपादाचार्य विरचित कल्याणकारक ग्रन्थ का कर्नाटक भाषा में भाषांतर किया है । यह ग्रन्थ भी बहुत महत्वपूर्ण है। यह ग्रन्थ पीठिका प्रकरण, परिभाषा प्रकरण, षोडशज्वर निरूपण आदि अष्टांगों से युक्त है, यह ग्रन्थ कन्नड भाषा के उपलब्ध वैद्यक ग्रन्थों में सब से प्राचीन है। इस ग्रन्थ में सोमनाथ कवि ने पूज्यपाद का बहुत आदर के साथ उल्लेख किया है, वह इस प्रकार है। सुकरं तानेने पूज्यपाद मुनिगल मुंपेलद कल्याणका रंकमवाहट सिद्धसार चरका सुत्कृष्टमं सद्गुणा धिकमं वर्जित मद्य मांस मधुवं कर्णाटदि लोकर क्षकमा चित्र मदागे चित्र कवि सोमं पेल्द नितल्तियिं ॥ यह काव्य भी सुन्दर है, प्रत्येक चरण के द्वितीयाक्षर में ककार को साधा गया है । ग्रंथकार ने स्पष्ट किया है कि आचार्य पूज्यपाद ने पहिले जो कल्याणकारक की रचना की है, जो वाग्भट, चरक आदि आयुर्वेद ग्रंथों से उत्कृष्ट है, जिस में मद्य, मांस और मधु का प्रयोग वर्जित किया है, ऐसे लोकरक्षक, उत्तम ग्रंथ को मैंने कर्नाटक भाषा के विविध छन्दों में अत्यंत प्रेम के साथ निर्माण किया है, यह उपर्युक्त श्लोक का भाव है, इससे स्पष्ट है वाग्भट चरकादि ग्रंथ भी कवि सोमनाथ के समय विद्यमान थे। इसी प्रकार कीर्तिवर्म ने गोवैद्य, मंगराज ने खगेंद्रमणिदर्पण नामक विष वैद्य, अभिनव चन्द्र ने हयशास्त्र नामक हयवैद्य ( अश्वपरीक्षा व चिकित्सा), देवेंद्रमुनि ने बालग्रह चिकित्सा, अमृतनन्दि ने वैद्यक निघंटु आदि ग्रंथों की रचना कर इस विभाग की अपूर्व सेवा की है। इसी प्रकार जगदेव महामंत्रवादि श्रीधरदेव ने २४ अधिकारों से युक्त वैद्यामृत ग्रंथ की रचना की है। साथ ही साळव कवि के द्वारा विरचित रसरत्नाकर और वैद्य सांगत्य ग्रंथ भी कम महत्त्व के नहीं हैं। इस प्रकार कन्नड के प्रथितयश महाकवियों ने वैद्यक विषय में भी अपनी अमूल्य सेवा प्रदान की है। जैन वैद्यक ग्रन्थों में अहिंसा प्रधान दृष्टि रखी गई है, यह हम पहिले कह आये हैं। खाओ, पिओ, मजा करो इस दृष्टि से ही जैनाचार्यों ने काम नहीं लिया है, अपने शरीर के स्वास्थ्य के लिए अन्य असंख्य जीवों की हत्या करना मानवता नहीं हो सकती है, 'आत्मवत्सर्वभूतेषु यः पश्यति स मानवः,' यह Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012022
Book TitleAcharya Shantisagar Janma Shatabdi Mahotsav Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinwani Jirnoddharak Sanstha Faltan
PublisherJinwani Jirnoddharak Sanstha Faltan
Publication Year
Total Pages566
LanguageHindi, English, Marathi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size14 MB
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