SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 527
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३२२ आ. शांतिसागरजी जन्मशताब्दि स्मृतिग्रंथ करना जरुरी नहीं बतलाया गया, और दफा १२ के लिहाज से दत्तक पुत्र दत्तक माता-पिता की इस्टेट में उनकी हयाती में कोई हक्क प्राप्त नहीं कर सकता। सिर्फ रिश्ते के लिहाज से दत्तक पुत्र समझा जाता है । इन दोनों नये कानून में जैन लॉ की मान्यताओं को अंशतः स्वीकार किया है। ५. जैनीयों के बारे में न्यायालयों के कुछ महत्त्व के फैसले (१) ऑल इंडिया रिपोर्टर १९६२ सुप्रीम कोर्ट पान १९४३ (A. I. R. 1962 S. C. 1943) मुन्नालाल बनाम राजकुमार वगैरह इस मुकद्दमे के दोनों पार्टी जैन थे। जायदाद के विभक्त करने का (Partition suit) दावा था । एकत्र कुटुंब के विधवा स्त्री ने दत्तक लिया था। उस विधवा ने दत्तक लेने के लिए अपने पति की आज्ञा भी (permission) नहीं ली थी। कुटुंब के अन्य लोगों ने इसका विरोध किया था। तहत की कोर्ट ने जिसको दत्तक लिया था उसको मंजुर किया और वही फैसला हायकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट से बहाल रखा गया। विभाजन की प्राथमिक डिक्री (preliminery) विधवा के हक्क में हुई थी। लेकिन प्रत्यक्ष बटवारे (Actual position) के पहिले ही विधवा का स्वर्गवास हुआ तो भी विधवा का वारस पुत्र उस विभाजन में अपना हिस्सा पा सकता है ऐसा सुप्रीम कोर्ट ने फैसला किया। (२) ऑल इंडिया रिपोर्टर सन १९६८ कलकत्ता ७४ (A. I. R. 1961 Cal. 74) कमीश्नर वेल्थ हॅक्स प. बंगाल बनाम चंपाकुमारी सिंधी इस मुकद्दमे में कलकत्ता हायकोर्ट ने फैसला किया कि जैन वेदों को नहीं मानते। हिंदुओं के क्रिया कांड को जैन नहीं स्वीकार करते । हिंदुओं से धर्म-विमुख हिंदु (Hindu) जैनियों को मानना सही नहीं है। जैन हिंदु नहीं है इस वजह से हिंदु शादी का कायदा १९५५ (Hindu marriage Act 1955) और हिंदु विरासत का कायदा १९५६ (Hindu succession Act 1956) जैनीयों को यह कानून लगाया गया है । इससे मालूम होता है कि हिंदु से जैन अलाहिदा हैं । इस मुकदमे में हिंदु एकत्र कुटुंब के समान जैन एकत्र कुटुंब पद्धति नहीं है ऐसा तय किया गया है । अंतिम निवेदन न्यायालयीन फैसलों के अनुसार जैन धर्म स्वतंत्र है और हिंदुधर्म भी एक स्वतंत्र धर्म है; परंतु जनीयों को हिंदु धर्म से विमुख समझना सही नहीं है । जैनीयों का तत्त्वज्ञान और उसके श्रद्धान के अनुसार जो जैन समाज रचना है ऐसी समाज व्यवस्था जैन धर्मप्रणाली के अनुसार कायम रह सके ऐसा प्रयत्न करना हर जैनीका कर्तव्य है और इसी ध्येय पूर्ति के लिये जैन लॉ पर अमल हो सके ऐसा समुचित प्रयत्न होना जरूरी है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012022
Book TitleAcharya Shantisagar Janma Shatabdi Mahotsav Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinwani Jirnoddharak Sanstha Faltan
PublisherJinwani Jirnoddharak Sanstha Faltan
Publication Year
Total Pages566
LanguageHindi, English, Marathi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy