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________________ ३२१ जैन कानून जैन मत में देवताओं को भोग लगाना और देवता अपनी इच्छा तप्ति करें ऐसी प्रार्थना करना मिथ्यात्व माना जाता है, लेकिन हिंदु मत में देवताओं को प्रसन्न करना, उनसे अर्थ प्राप्ति की सिद्धि कल्पना है। (३) हिंदु वेद को मानते हैं; जैनी वेद को नहीं मानते । जैन धर्म में सम्यग्दर्शन-सम्यग्ज्ञान और सम्यग्चारित्र का पालन करना इसको धर्म कहा गया है । चार घातीया कर्म का नाश होने के बाद केवलज्ञान प्राप्त होता है उसी अवस्था को अरिहंत कहते हैं । ऐसे केवलज्ञानीयों ने जिन तत्त्वों का प्रतिपादन किया है उन पर अटल श्रद्धा रखना इसे सम्यग् दर्शन कहते है । यथार्थ ज्ञान को सम्यग्ज्ञान कहते हैं । वह ज्ञान चार प्रकारों में पाया जाता है । प्रथमानुयोग, करणानुयोग, चरणानुयोग और द्रव्यानुयोग । पांच अणुव्रत, तीन गुणव्रत और चार शिक्षाव्रत को पालन करने से गृहस्थ का सम्यक् चारित्र होता है । ४. किसी बच्चे को दत्तक लेना केवल व्यावहारिक दृष्टि से ( In a Secular way) जैन मानते हैं। ___ पारलौकिक सुख के प्राप्ति की इच्छा से जैन दत्तक को नहीं लेते। जैन मतानुसार पुत्र के होने न होने से कोई मनुष्य पुण्य पाप का भागीदार नहीं बनता। तीर्थंकर पुत्र न होते हुये भी मुक्त स्थिति को प्राप्त हुये है। और बहुत से मनुष्य पुत्रवान होते हुये भी अपने कर्मानुसार नरक गति को प्राप्त हुए हैं। हिंदु धर्म में दत्तक लेना एक धर्मविधि है। पारलौकिक सुख प्राप्त करने के हेतु से हिंदु धर्म में दत्तक लेना अवश्य समझते हैं। ५. स्त्रियों के अधिकार–पति से प्राप्त हुये जायदाद पर जैन लॉ के अनुसार पूरे होते हैं परन्तु हिंदु लॉ के अनुसार स्त्रियों को सिर्फ जीवन पर्यंत ( Life estate) का अधिकार होता है। ६. हिंदु लॉ में एकत्र कुटुंब और अविभाजित एस्टटे (Joint family & Joint property) की प्रशंसा की गई है लेकिन जैन लॉ में उसका निषेध न करते हुए विभक्त दशा का आग्रह किया गया है ताकि धर्म की वृद्धि हो। भारत स्वतंत्र होते के बाद हिंदु लॉ के विरासत और दत्तक सम्बन्धी मान्यता में बहुत फरक हो गया है। १. हिंदु विरासत का कायदा स. १९५६ (Hindu Succession Act 1956) अमल में आया है। बुद्ध, जैन और सीख धर्मी लोक भी इस कानून के पाबंद किये गये हैं। इस कानून के दफा १४ के लिहाज से किसी हिंदु स्त्री के कब्जे में जो कुछ जायदाद आई हो उस जायदाद की वह स्त्री पूर्ण मालिक बन जाती है। २. हिंदु दत्तक और भरण पोषण का कायदा १९५६ ( Hindu Adoption & Maintenance Act 1956) पास हुआ है इस कानून के दफे ११ के लिहाज से दत्तहोम का ४१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012022
Book TitleAcharya Shantisagar Janma Shatabdi Mahotsav Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinwani Jirnoddharak Sanstha Faltan
PublisherJinwani Jirnoddharak Sanstha Faltan
Publication Year
Total Pages566
LanguageHindi, English, Marathi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size14 MB
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