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________________ २३८ आ. शांतिसागरजी जन्मशताब्दि स्मृतिग्रंथ सुग्रीवादिमुनीन्द्रः रचितं शास्त्रं यदायसद्भावम् । तत्सम्प्रत्यार्थाभिर्विरच्यते मल्लिषेणेन ॥ ध्वजधूमसिंहमण्डल वृषखरगजवायसा भवन्त्यायाः । ज्ञायन्ते ते विद्भिरिहकोत्तरगणनया चाष्टौ ॥ इन उद्धरणों से स्पष्ट है कि इनके पूर्व भी सुग्रीव आदि जैन मुनियों के द्वारा इस विषय की ओर रचनाएँ भी हुई थीं, उन्हींके सारांश को लेकर आयसद्भाव की रचना की गयी है। इस कृति में १९५. आर्याऐं और अन्त में एक गाथा, इस तरह कुल १९६ पद्य हैं । इसमध्वज, धूम, सिंह, मण्डल, वृष, खर, गज और वायस इन आठों आर्यों के स्वरूप और फलादेश वर्णित हैं। भट्टवोसरि-आयज्ञानतिलक नामक ग्रन्थ के रचयिता दिगम्बराचार्य दामनन्दी के शिष्य भट्टवोसरि हैं । यह प्रश्नशास्त्र का महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है । इसमें २५ प्रकरण और ४१५ गाथाएं हैं। ग्रन्थकर्ता की स्वोपज्ञ वृत्ति भी है। दामनन्दी का उल्लेख श्रवणबेलगोल के शिलालेख नं. ५५ में पाया जाता है । ये प्रभाचन्द्राचार्य के सधर्मा या गुरु-भाई थे। अतः इनका समय' विक्रम संवत, की ११ वीं शती है और भट्टवोसरि का भी इन्हीं के आसपास का समय है । इस ग्रन्थ में ध्वज, धूम, सिंह, गज, खर, श्वान, वृष, ध्वांक्ष इन आठ आर्यों द्वारा प्रश्नों के फलादेश का विस्तृत विवेचन किया है। इसमें कार्य-अकार्य, जय-पराजय, सिद्धि-असिद्धि आदि का विचार विस्तारपूर्वक किया गया है । प्रश्नशास्त्र की दृष्टि से यह ग्रन्थ अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है । उदय प्रभदेव-इनके गुरु का नाम विजयसेन सूरि था । इनका समय ई. सन् १२२० बताया जाता है। इन्होंने ज्योतिष विषयक आरम्भ सिद्धि अपरनामा व्यवहारचर्या ग्रन्थ की रचना की है। इस ग्रन्थ पर वि. सं. १५१४ में रत्नशेखर सूरि के शिष्य हेमहंस गणि ने एक विस्तृत टीका लिखी है। इस टीका में इन्होंने मुहूर्त सम्बन्धी साहित्य का अच्छा संकलन किया है। लेखक ने ग्रन्थ के प्रारम्भ में ग्रन्थोक्त अध्यायों का संक्षिप्त नामकरण निम्नप्रकार दिया है । दैवज्ञदीपकालिकां व्यवहारचर्यामारम्मसिद्धिमुदयप्रभदेवानाम् शास्तिक्रमेण तिथिवारमयोगराशिगोचर्यकार्यागमवास्तुविलग्न भिः । हेमहंसगणि ने व्यवहारचर्या नाम की सार्थकता दिखलाते हुए लिखा है “व्यवहारं शिष्टजनसमाचारः शुभतिथिवारमादिषु शुभकार्यकरणादिरूपस्तस्य चर्या ।" यह ग्रन्थ मुहूर्त चिन्तामणि के समान उपयोगी और पूर्ण है। मुहूर्त विषय की जानकारी इस अकेले ग्रन्थ के अध्ययन से की जा सकती है। १. प्रशस्तिसंग्रह, प्रथम भाग, संपादक - जुगलकिशोर मुख्तार, प्रस्तावना, पृ. ९५-९६ तथा पुरातन वाक्य सूची की प्रस्तावना, पृ. १०१-१०२. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012022
Book TitleAcharya Shantisagar Janma Shatabdi Mahotsav Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinwani Jirnoddharak Sanstha Faltan
PublisherJinwani Jirnoddharak Sanstha Faltan
Publication Year
Total Pages566
LanguageHindi, English, Marathi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size14 MB
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