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________________ २३६ आ. शांतिसागरजी जन्मशताब्दि स्मृतिग्रंथ समकुट्टीकरण, विषमकुट्टीकरण, और मिश्रकुट्टीकरण आदि अनेक प्रकार के गणित हैं । पाटीगणित और रेखागणित की दृष्टि से इसमें अनेक विशेषताएँ हैं। इसके क्षेत्रव्यवहार प्रकरण में आयत को वर्ग और वर्ग को वृत्त में परिणत करने के सिद्धान्त दिये गये हैं। समत्रिभुज, विषमत्रिभुज, समकोण, चतुर्भुज, विषमकोण चतुर्भुज, वृत्तक्षेत्र, सूची व्यास, पंचभुजक्षेत्र एवं बहुभुजक्षेत्रों का क्षेत्रफल तथा घनफल निकाला गया है । ज्योतिष पटल में ग्रहों के चार क्षेत्र, सूर्य के मण्डल, नक्षत्र और ताराओं के संस्थान, गति, स्थिति और संख्या आदि का प्रतिपादन किया है । चन्द्रसेन के द्वारा 'केवलज्ञान होरा' नामक महत्त्वपूर्ण विशालकाय ग्रन्थ लिखा गया है । यह ग्रन्थ कल्याणवर्मा के पीछे का रचा गया प्रतीत होता है। इसके प्रकरण सारावली से मिलते-जुलते हैं, पर दक्षिण में रचना होने के कारण कर्णाटक प्रदेश के ज्योतिष का पूर्ण प्रभाव है। इन्होंने ग्रंथ के विषय को स्पष्ट करने के लिए बीच-बीच में कन्नड़ भाषा का भी आश्रय लिया है। इस ग्रन्थ अनुमानतः चार हजार श्लोकों में पूर्ण हुआ है । ग्रन्थ के प्रारम्भ में कहा है होरा नाम महाविद्या वक्तव्यं च भवद्धितम् । ज्योतिर्ज्ञानकसारं भूषणं बुधपोषणम् ॥ उन्होंने अपनी प्रशंसा भी प्रचुर परिणाम में की है आगमः सदृशो जैनः चन्द्रसेनसमो मुनिः । केवलीसदृशी विद्या दुर्लभा सचराचरे । इस ग्रन्थ में हेमप्रकरण, दाम्यप्रकरण, शिलाप्रकरण, मृत्तिका प्रकरण, वृक्ष प्रकरण, कार्पास-गुल्म बल्कल-तृण-रोम-चर्म-पटप्रकरण, संख्या प्रकरण, नष्ट द्रव्य प्रकरण, निर्वाह प्रकरण, अपत्य प्रकरण, लाभालाभ प्रकरण, स्वर प्रकरण, स्वप्न प्रकरण, वास्तु प्रकरण, भोजन प्रकरण, देहलोहदिक्षा प्रकरण, अंजन विद्या प्रकरण एवं विष विद्या प्रकरण, आदि हैं। ग्रन्थ को आद्योपान्त देखने से अवगत होता है कि यह संहिताविषयक रचना है, होराविषयक नहीं। श्रीधर—ये ज्योतिष शास्त्र के मर्मज्ञ विद्वान हैं। इनका समय दसवीं शती का अंतिम भाग है। ये कर्णाटक प्रान्त के निवासी थे । इनकी माता का नाम अब्बोका और पिता का नाम बलदेव शर्मा था । इन्होंने बचपन में अपने पिता से ही संस्कृत और कन्नड़-साहित्य का अध्ययन किया था। प्रारम्भ में ये शैव थे, किन्तु बाद में जैन धर्मानुयायी हो गये थे। इनकी गणितसार और ज्योतिर्ज्ञानविधि संस्कृत भाषा में तथा जातकतिलक कन्नड़-भाषा में रचनाएं हैं। गणितसार में अभिन्न गुणक, भागहार, वर्ग, वर्गमूल, घन, घनमूल, भिन्न, समच्छेद, भाग जाति, प्रभागजाति, भागानुबन्ध, भागमात्र जाति, त्रैराशिक, सप्तराशिक, नवराशिक, भाण्डप्रतिभाण्ड, मिश्रक व्यवहार, एकपत्रीकरण, सुवर्ण गणित, प्रक्षेपक गणित, समक्रयविक्रय, श्रेणीव्यवहार, खातव्यवहार, चितिव्यवहार, काष्ठक व्यवहार, राशि व्यवहार, एवं छायाव्यवहार आदि गणितों का निरूपण किया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012022
Book TitleAcharya Shantisagar Janma Shatabdi Mahotsav Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinwani Jirnoddharak Sanstha Faltan
PublisherJinwani Jirnoddharak Sanstha Faltan
Publication Year
Total Pages566
LanguageHindi, English, Marathi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size14 MB
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