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________________ परमात्म प्रकाश और उसके रचयिता १७७ अपने शिष्य प्रभाकर भट्ट को उद्बोधित करने के लिए ही इस ग्रन्थ की रचना की गई है । इसलिए सबसे प्रथम शिष्य प्रश्न करता है च गई दुक्ख हैं तत्तहँ जो परमप्पर कोइ । चउ-गई दुक्ख विणासयरु कहहु पत्थाएं सो वि ॥१०॥ चार गतियों के दुखों से तप्तायमान ( दुखी) जीवों के दुखसे छुडानेवाला कोई चिदानंद परमात्मा है वह कौन है, हे गुरुवर उसे बतलाइये । इसका उत्तर देते हुए योगीन्दु मुनि ने कहा है - जेह णिम्मलु णाणमउ सिद्धिहि णिवसइ देउ । तेहउ णिवसइ वंभु पर देह हैं मं करि पेउ ॥ २६ ॥ जैसा कर्मरहित, केवल ज्ञानादि से युक्त प्रकट कार्यसमयसार सिद्ध परमात्मा परम आराध्य देव मुक्ति में रहता है वैसा ही सब लक्षणों से युक्त शक्ति रूप कारण परमात्मा इस देह में रहता है । इसलिए हे प्रभाकर भट्ट ! तू सिद्ध भगवान् और अपने में भेद मत कर ! आचार्य श्री ने यहां स्पष्ट किया कि संसार दुख से छुडाने वाला तेरा जीव नामा पदार्थ इस देह में रहता है, वही परमात्मा उपादेय है । दूसरा कोई परमात्मा तुझे दुख से नहीं छुडा सकता है । इससे आगे उपालम्भ देते हुए योगीन्दु देव कहते हैं— दिठ्ठे तुति लहु कम्मइँ पुव्व किया हूँ । सो परु जाणहि जो इया देहि वसंतु ण काइँ ||२७|| जिस परमात्मा के देखते पूर्वोपार्जित कर्म शीघ्र ही नष्ट हो जाते हैं उस सदानंद रूप देह में रहने वाले निज परमात्मा को तू क्यों नहीं जानता है ? इस जीव को संसार के दुख से अन्य कोई परमात्मा नहीं छुड सकता है । अपना कारणपरमात्मा ही अपनी शक्ति के बल पर कार्य परमात्मा ( सिद्ध ) बन सकेगा। यहां कर्ता वाद का निषेध करने के लिए ग्रन्थकार ने कहा है कि न तो कोई परमात्मा और न कर्म आदि तेरे बनाने बिगाडने वाले हैं संसार का अन्य कोई भी पदार्थ तेरे लिए साधक बाधक नहीं है । उन्होंने आत्म करने के लिए उपादान (निजशक्ति ) को जागृत करने का संदेश प्रवाहित किया है प्रत्येक प्राणि के लिए साध्य है और वही साधक । साधक ही उसी की साधना से परमात्मा से व्यक्तिरूप कार्य परमात्मा बन जाता है । पुरुषार्थ की प्रसिद्धि । निज परमात्मा ही शक्तिरूप कारण Jain Education International निज परमात्मा का ज्ञान कराने के लिए सबसे पूर्व प्रत्येक प्राणि को भेद विज्ञान करना आवश्यक है। क्योंकि स्वपर भेद विज्ञान के बिना उस निज परमात्मा का ज्ञान कैसे हो सकता है । अतः योगीन्दु देव कहते हैं १३ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012022
Book TitleAcharya Shantisagar Janma Shatabdi Mahotsav Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinwani Jirnoddharak Sanstha Faltan
PublisherJinwani Jirnoddharak Sanstha Faltan
Publication Year
Total Pages566
LanguageHindi, English, Marathi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size14 MB
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