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________________ स्मृति-मंजूषा ११७ पंद्रह मिनिट क्यों न हो अवश्य करो । कर्मों की निर्जरा इसीसे संभव है, मोक्षमार्ग और सुखमार्ग यही शब्दों की गूंज आज भी मालूम होती है । धन्य ऐसे महात्मा ! जिन्होंने मुनिमार्ग को अक्षुण्णरूप में इस निकृष्टतर काल में भी निष्प्रमाद निरतिचार चारित्र द्वारा प्रगट किया । अनेकशः प्रणाम हो । मूक व्यक्ति को वाणी मिली कोल्हापुर के पास निमशिर ग्राम में एक पैतीस वर्ष का युवक था। उसे अण्णप्पा दाढीवाले के नाम से लोग जानते थे। वह शास्त्रचर्चा में प्रवीण था । अकस्मात वह गूंगा बन गया । वर्ष तक गूंगेपन के कारण वह बहुत दुःखी रहा । लोगों के समक्ष जाने में उसे लज्जा का अनुभव होता था । उसका आचार्य श्री शांतिसागरजी से विशेष परिचय था । उसे लोग जबरदस्ती आचार्य श्री के समीप ले गए। आचार्य महाराज ने उससे आग्रहपूर्वक कहा-" बोलो !! बोलो ! तुम बोलते क्यों नहीं हो ?" फिर उन्होंने कहा “ णमो अरिहंताणं पढो।" बस, उसका गूंगापन चला गया और वह पूर्ववत् बोलने लगा। दर्शक मंडली आश्चर्य मग्न हो गई। चार दिन के बाद वह अपने घर लौट आया। वहाँ पहुँचते ही वह फिरसे गूंगा बन गया। मैं उसके पास पहुंचा। सारी कथा सुनकर मैंने कहा, “ वहाँ एक वर्ष क्यों नहीं रहा ? जब तुम्हें आराम पहुंचा था तो इतने जलदी भाग आने की भूल क्यों की ?" वह पुनः आचार्य श्री के चरणों में पहुंचा । उन तपोमूर्ति साधुराज के प्रभाव से वह पुनः बोलने लगा । वहाँ वह १५ या २० दिन और रहा, इसके बाद वह पुनः गूंगा न हुआ वह पूर्ण रोगमुक्त हो गया। जैनवाडी में सम्यक्त्व की धारा ___ जैनवाडी में आकर उन्होंने वर्षायोग का निश्चय किया। इस जैनवाडी को जैनियों की वस्ती ही समझना चाहिए। यहाँ प्रायः सभी जैनी थे, किंतु वे प्रायः भयंकर अज्ञान में डबे हुए थे। सभी कुदेवों की पूजा करते थे । महाराज श्री की पुण्य देशना से सब श्रावकों ने मिथ्यात्व का त्याग किया और अपने घरसे कुदेवों को अलग किया। उस समय, वहाँ के जो राजा थे, यह जानकर आश्चर्य में रहे कि आचार्य श्री महाराज तो बडे पुण्य चरित्र महापुरुष है। ये भला हम लोगों के द्वारा पूज्य माने गये देवों को गाडी में भरवाकर नदी में पहुंचाने का कार्य क्यों कराते हैं ? राजा और राणी दोनों महाराज की तपश्चर्या से खूब प्रभावित थे। उनके प्रति बहुत आदर भाव भी रखते थे । एकदिन राजा पूज्य श्री की सेवा में स्वयं उपस्थित हुआ और बोले " महाराज, आप यह क्या करवाते हैं जो गाडियों में देवों को भरवाकर नदी में पहुंचा देते हैं।" महाराजने कहा :--" राजन् ! आप एक प्रश्न का उत्तर दो। आप के यहाँ भाद्रपद में गणपति की स्थापना होती है या नहीं ? " Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012022
Book TitleAcharya Shantisagar Janma Shatabdi Mahotsav Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinwani Jirnoddharak Sanstha Faltan
PublisherJinwani Jirnoddharak Sanstha Faltan
Publication Year
Total Pages566
LanguageHindi, English, Marathi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size14 MB
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