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________________ ११४ आ. शांतिसागरजी जन्मशताब्दि स्मृतिग्रंथ आप परम शान्त निष्कषायी थे। आपके साथ में विशाल संघ भी था। अंत में आप भी इस भौतिक शरीर को नाशवंत जान कर विक्रम सं. २०१४ आश्विन कृष्णा अमावास्या के प्रातः १०-५० मिनट पर अपने प्रथम शिष्य मुनि श्री १०८ शिवसागरजी को अपना उत्तराधिकारी बनाकर स्वर्गवासी हो गये । आचार्य श्री शिवसागरजी महाराज शरीर से बहुत कृश थे । किन्तु आत्म तेज बडा प्रबल था । परम तपस्वी थे। पूर्वोक्त दोनों महाराजों की तरह आप भी बडे ज्ञानी विद्वान् थे । १२ वर्ष तक आचार्य पद में रहकर आपने बडे भारी विशाल संघ का संचालन किया । सारे भारतभर में आपकी तपस्या की छाप जमी हुई थी। किन्तु अचानक ही आपके कंठ में टिटॅनस की बिमारी हो गई सो बहुत कुछ उपचार करने के उपरान्त भी विक्रम सं. २०२६ के फाल्गुन कृष्णा अमावास्या के दोपहर को श्री अतिशय क्षेत्र शान्तिवीरनगर (श्रीमहावीरजी) में सावधानता पूर्वक नमस्कार मंत्र का उच्चारण करते हुए स्वर्गस्थ हो गये । आपके अनंतर आपके गुरुभाई परम पूज्य मुनि धर्मसागरजी महाराज हुए। जो वर्तमान में ससंघ यत्र तत्र विहार करते हुए भव्य जीवों को धर्मदेशना दे रहे हैं। यह हार्दिक भावना है कि स्वर्गस्थ तीनों आचार्य विभूतियाँ शीघ्रातिशीघ्र मोक्ष पद को प्राप्त करे।। कठिन धारणा और विलक्षण योगायोग श्री. मिश्रीलालजी पाटणी, ग्वालियर इ. स. १९३० में प. पू. चारित्रचक्रवर्ती आचार्य श्री शांतिसागरजी महाराज का ५ दिनके लिए ग्वालियर में शुभागमन हुआ । उपदेश से प्रभावित होकर हमने शूद्र-जल-त्याग आदि नियम लिए। एक दिन दानावली धरमशाला चंपा बाग में आहार के हेतु ठहरे । पडगाहन के समय विधी नहीं मिलने से महाराजजी वापिस लौट गये। हमने भी एक घंटे के बाद धोती दुपट्टा उतार रक्खे । महाराज श्री वापिस लौटने की खबर मिलते ही तुरन्त उतारे हुए कपडे भीगो कर निचोड कर पहिने और पडगाहन किया । विधि मिल गई । आहार निरंतराय संपन्न हुआ । आहार के पश्चात् महाराजजी से बार बार पूछने पर कहा गया कि “आज गीले कपडे पहनने वालों के यहाँ भिक्षा लेंगे ऐसा संकल्प होनेसे दूसरी बार वापिस लौटने पर आप के यहां विधि मिली" ऐसी धारणाएं इस निकृष्ट काल में परम तपोनिधि महाराजजी करते थे। पुण्योदय से निर्वाह भी होता गया । धन्य है ऐसे महान् तपस्वी की तपस्या को ! Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012022
Book TitleAcharya Shantisagar Janma Shatabdi Mahotsav Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinwani Jirnoddharak Sanstha Faltan
PublisherJinwani Jirnoddharak Sanstha Faltan
Publication Year
Total Pages566
LanguageHindi, English, Marathi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size14 MB
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