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________________ स्मृति - मंजूषा ११३ गुरुदेव ! वीरसागरजी महाराज तो अंगुलियों पर जाप लगाते हैं । माला से कभी भी नहीं फेरते । तो अब क्या दूं ? अच्छा, महाराजजी आपके पास तो तीन लोक की निधि है । वह तो वीरसागरजी को भी प्राप्त है । महाराज हम भूल रहे हैं । आप जौहरी हैं । आपने सच्ची मणी की पहचान कर ली है । अच्छा ! अब ज्यादा समय नहीं है । तुम्हारे गुरुजी को हम आचार्यपद देवेंगे । कल का दिन अच्छा है । महाराज ! इससे बढकर और क्या होगा ? मुझे इसमें पूर्ण सन्तोष है । क्या वे आचार्य बन जावेंगे ? महाराज उन्हें आपकी आज्ञा शिरोधार्य करनी पडेगी । फिर दूसरे दिन ही प्रथम भाद्रपद शुक्ला सप्तमी के दोपहर को २ बजे हजारों जनसमुदाय में आचार्यश्री ने निम्न शब्द कहते हुए पू. वीरसागरजी को आचार्य पद की घोषणा की । "L 'हमने प्रथम भाद्रपद कृष्णा ११ रविवार ता. २४-८-५५ से सल्लेखना व्रत लिया है । अतः दिगम्बर जैन धर्म और श्री कुन्दकुन्दाचार्य परम्परागत दिगम्बर जैन आम्नाय का निर्दोश संरक्षण तथा संवर्धन हो इसलिये हम आचार्यपद शिष्य श्री वीरसागरजी मुनिराज को आशीर्वादपूर्वक आज प्रथम भाद्रपद शुक्ला सप्तमी विक्रम सं. २०१२ बुधवार के प्रभात समय त्रियोग शुद्धिपूर्वक संतोष से प्रदान करते हैं। " प. पू. आचार्यश्री ने पू. वीरसागरजी महाराज के लिये इस प्रकार आदेश दिया है । 66 'इस पद को ग्रहण करके तुम को दिगम्बर जैन धर्म तथा चतुर्विध संघ का आगमानुसार संरक्षण तथा संवर्धन करना चाहिये । ऐसी आचार्य महाराज की आज्ञा है । श्री आचार्य महाराज ने आपको शुभ आशीर्वाद कहा है । " लिखी -- १. गेन्दमल बम्बईवालों का त्रिवार नमोस्तु, नमोस्तु, नमोस्तु । २. चन्दूलाल ज्योतीचन्द बारामती का त्रिवार नमोस्तु, नमोस्तु नमोस्तु । यह सुनते ही सारे जन समुदाय में अपार आनन्द की लहरे दौड गयी । एवं जयघोष के नारे लगाये । परमपूज्य आचार्यवर ने उत्तराधिकारी श्री वीरसागरजी महाराज को बनाकर आप अपने इस नाशवन्त शरीर से ममत्व त्याग कर आत्मसाधना में तन्मय हो गये । कर हुए प. पूज्य आचार्यवर श्री वीरसागरजी महाराज ने अपने दिव्य ज्ञान से भव्य जीवों को संबोधित आचार्य पद में तीन वर्ष तक इस भारत भूपर विहार किया । आचार्य श्री का ज्ञान अलौकिक था । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012022
Book TitleAcharya Shantisagar Janma Shatabdi Mahotsav Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinwani Jirnoddharak Sanstha Faltan
PublisherJinwani Jirnoddharak Sanstha Faltan
Publication Year
Total Pages566
LanguageHindi, English, Marathi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size14 MB
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