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________________ स्मृति-मंजूषा पत्रों के जबाब न मिलने की शिकायत की तो उत्तर मिला कि हम लोगोंने समझा कि नगर में कोई विरोधी की यह करामात के पंचायत के नाम से तार दे दिया होगा । अतः उपेक्षा कर इस तरफ संघ ने प्रयाण किया। हमें स्पष्ट शब्दों में विरोध प्रकट करने सिवाय कोई मार्ग नहीं रह गया। मेरे विरोध की स्पष्टता को आंकते हुए संघपतिजी को घोर आश्चर्य हुआ, वे अवाक् हो गये। उन्हें ऐसी आशा न थी। सम्हल कर थोडी दर बाद बोले कि अब संघ चल चुका है पीछे न जायगा । आपका निमंत्रण लौटा लिया गया संघ का चातुर्मास मार्ग में कहीं किसी अन्य नगर में हो जायगा । मैंने कहा कि हमारे प्रांत में यह संयम नहीं है, तो उन्होंने उत्तर दिया कि जंगल में टीन के टपरे डाल कर हम चातुर्मास कर लेंगे पर संघ अब वापिस न जायगा। हम हतप्रभ हो कटनी लौट आए। पंचायत में उक्त समस्या रखी। पंचायत ने भी आनेवाली इस अप्रत्याशित घटना के मुकाबिले की तयारी की। चंदा हुवा । स्थानों की व्यवस्था बनाई गई। इस प्रदेश में प्रथम चातुर्मास था। संघपति का लवाजमा बडा था, पांच मास में आने जानेवाले श्रावकों की संख्या भी १०-२० हजार होगी, यह सब विचार कर व्यवस्था करना शक्ति के बाहिर दीखा। पर अब उपाय क्या ? वह तो करना ही पडेगा । किया गया। सारा नगर कार्यव्यस्त हो गया, उमंगे बढ़ने लगी। पर मुझ भाग्यहीन का चित्त उदास था । सोचा खुफिया तौरपर संघ के साथ १ सप्ताह रहकर उनकी गतिविधि देखी जाय और फिर समाज के सामने उनकी यथार्थ स्थिति रखी जाय तो समाज इस काम से विरत होगी। घरसे चुपचाप चल दिया । मार्ग से रीवा के आगे जाकर संघ के साथ हो लिए। भाग्य से संघपति मुंबई चले गए थे। अतः पहिचाननेवाला संघ में कोई न था। __ मुनिसंघ की चर्या देखने तथा गुणदोष परखने का ही प्रमुख काम था। जैसे जैसे दोषों की खोज करता था वहाँ वैसे वैसे गुण नजर आते थे । १ सप्ताह में जब पूरा विश्वास हो गया कि अखबारों के आधार पर हमने अपनी धारणाएँ गलत बनाई थीं, संघ तो परम निर्दोष है तब एक दिन वंदना की। इसके पूर्व कभी उनकी वंदना नहीं की थी। और रेलमार्ग पकड घर लौट आया। लोग आश्चर्यान्वित थे कि ये कहाँ चले गए थे । सबका आश्चर्य दूर हुआ और सब आनंद विभोर हो गए जब मैंने अपनी इस खुफियाँ यात्रा का विवरण सुनाया और यह बताया कि संघ के सभी साधु उत्कृष्ट चारित्रवाले अनुपम तपस्वी हैं। ___ उत्साह की लहर भर गई और बडे समारोह पूर्वक संघ का स्वागत हुआ तथा अभूतपूर्व चातुर्मास हुआ कि लोग आज भी उसका पुण्यस्मरण करते नहीं अधाते । हजारों यात्रियों का प्रतिदिन आगमन भक्ति-श्रद्धा-पूजन-धर्मोपदेश, आहार, दर्शन-आदि सभी धार्मिक प्रक्रियाएँ बडे उल्हास के साथ सम्पन्न हो रही थीं। चातुर्मास ५॥ माहका हुआ । कब समय निकल गया पता नहीं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012022
Book TitleAcharya Shantisagar Janma Shatabdi Mahotsav Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinwani Jirnoddharak Sanstha Faltan
PublisherJinwani Jirnoddharak Sanstha Faltan
Publication Year
Total Pages566
LanguageHindi, English, Marathi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size14 MB
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