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________________ ७३ विचारवंतों के दृष्टि में वर्तमान साधुसृष्टि के परमोद्योतक आचार्य परमेष्ठी परमपूज्य श्री शांतिसागरजी महाराज लोकवन्द्य विद्वद्वन्द्यपाद परमपूज्य आचार्य शांतिसागर महाराज साधुसमाज एवं श्रावकसमाज चतुःसंघ द्वारा चारित्रचक्रवर्ती, योगींद्रचूडामणि, आचार्यशिरोमणि आदि यथार्थ पदगरिमाओं से विभूषित इस शताब्दि में साधुरत्न हुए हैं। वे परम वीतराग एवं ध्यान स्वाध्याय में तत्पर महातपस्वी, घोर उपसर्ग विजयी थे। परीषह विजयी, मन-वचन-काय एवं इंद्रिय दमन करनेवाले कषाय-विजेता मुनीन्द्र थे । मुनिगुण उनके चरणसान्निध्य में बैठ कर शांति लाभ करते थे। आचार्य महाराज भाषासमिति का पूर्ण पालन करते हुए परिमित भाषी थे। अधिक बोलना उन्हें इष्ट नहीं था । आवश्यकतानुसार सारी बात कहकर चुप हो जाते थे। घी, नमक, मीठा आदि रसों का परित्याग उन्होंने मुनिदीक्षा धारण करने के कुछ समय पीछे ही कर दिया था । उनकी सभी प्रकार की चर्या और निर्मलभाव चतुर्थकाल के निर्मोक्ष ध्यानरत साधुओं के समान हि था । वे महाविवेकी साधु परमेष्ठी थे। ऐसे साधुरत्न के प्रति मेरी अनंतानंत श्रद्धांजलि समर्पित हो। श्री मक्खनलालजी शास्त्री, मोरेना हम भी मुनिव्रत धारण करें __ हमने गुरुदेव के बारबार दर्शनका सौभाग्य पाया। उसीके ही फलस्वरूप हम इनके मार्ग का अनुसरण कर रहे है। मेरी यह उत्कट भावना है हम भी उनके समान महान् दिगंबर मुनिव्रत धारण करे । आचार्य श्री के चरणों में बारबार साष्टांग वन्दन करके वे मुमुक्षु जनों को चिरकाल तक पथप्रदर्शन करे ऐसी भावना हृदय से प्रगट करता हूँ। रा. ब. सर शेठ हुकुमचन्दजी, इन्दौर वीतराग मार्ग के प्रभावक परमपूज्य चारित्रचक्रवर्ती श्री. १०८ आ. शांतिसागरजी महाराज के जन्मशताब्दि महोत्सव के उपलक्ष्य में ‘स्मृतिग्रन्थ' प्रकाशित करने की योजना समुचित है। आचार्य श्री इस युग के सर्वाधिक प्रभावशाली तपस्वी थे । उनके पुनीत दर्शनों का सौभाग्य मुझे कई बार प्राप्त हुआ । इन्दौर में सन १९३४ में आचार्य श्री के ससंघ पधारने पर मेरे पूज्य माताजी दानशीला कंचनबाई ने आजीवन ब्रह्मचर्यव्रत ग्रहण किया था। देशके अनेक प्रान्तों में आचार्य श्री और उनके प्रमुख एवं प्रभावशाली शिष्य दि. जैन साधुसमूह के विहार होने से समाज और जन साधारण के आचार विचार में बहुत कुछ सुधार हुआ, मुक्तिमार्ग के प्रति श्रद्धा की भावना वृद्धिंगत हुई, साथ ही श्रमण संस्कृती के और वीतराग मार्ग की प्रभावना हुई है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012022
Book TitleAcharya Shantisagar Janma Shatabdi Mahotsav Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinwani Jirnoddharak Sanstha Faltan
PublisherJinwani Jirnoddharak Sanstha Faltan
Publication Year
Total Pages566
LanguageHindi, English, Marathi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size14 MB
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