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________________ ७२ हे गुरुदेव ! यही प्रार्थना है कि जैसे आप मिथ्याध्यवसायों से विश्रान्ति पाकर विशेष रूप से नैसर्गिक स्वभाव: को प्राप्त हो गए। वह शक्ति मुझमें आजाए । ऐसे महामुनिराजजी के चरणों में नम्र श्रद्धांजलि अर्पण है । आ. शांतिसागरजी जन्मशताब्दि स्मृतिग्रंथ सतसाहस पौरुष निर्भयता, दृढता और कार्य तत्परता । इन्द्रिय विजय और धर्म अहिंसा, में न कहीं थी कायरता ॥ विलक्षण योगायोग परम पूज्य आचार्य श्रींच्या जन्म शताब्दीचा काल व संस्थेच्या रौप्य महोत्सवाचा काल योगायोगाने एकच येत आहे. पू. आचार्य श्रींची जन्म शताब्दि म्हणजे त्याग-तपस्या- अनुभव - रत्नत्रय धर्म यांचा महोत्सव. या उत्कृष्ट निर्मिताला घेऊन जे करू ते थोडे ! या कालखण्डामध्ये अशा महापुरुषाचा समागम लाभणे हे समाजाचे परमभाग्य होय. कोल्हापूर मठ ८।१।७३ क्षु. जयमती महाराजांचे चरणी मठाची निरंतर भक्ति राहिली आहे. आज पुनः अत्यंत विनयाने त्रिवार नमोस्तु व श्रद्धांजलि अर्पण करताना धन्यता वाटते. परमार्थी युगपुरुष श्री १०८ चारित्र चक्रवर्ति आचार्य शान्तिसागरजी महाराज इस युग के परम तपस्वी साधु थे । उन्होंने समस्त भारत में विहार कर दिगम्बर जैन धर्म का उद्योत किया है । Jain Education International भट्टारक पट्टाचार्य लक्ष्मीसेन जब वे संघ सहित सागर पधारे थे तब मैं एक छोटा विद्यार्थी था । अतः उनसे अधिक संपर्क स्थापित नहीं कर सका। परन्तु उस समय उनके शुभागमन पर नगर में जो उल्लासपूर्ण धार्मिक वातावरण बना था और हजारों की जनसंख्या में उनके जो सारगर्भित प्रवचन होते थे वह सब दृश्य अब भी आँखों में झुलता है । पूज्य श्री का आदेश पाकर उनके नाम पर जो जिनवाणी जोर्णोद्धार संस्था स्थापित हुई थी । उसकी रजत जयंती के प्रसंग पर मैं स्वर्गस्थ आचार्य प्रवर के चरणों में अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं । पं. श्री पन्नालालजी साहित्याचार्य, सागर. For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012022
Book TitleAcharya Shantisagar Janma Shatabdi Mahotsav Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinwani Jirnoddharak Sanstha Faltan
PublisherJinwani Jirnoddharak Sanstha Faltan
Publication Year
Total Pages566
LanguageHindi, English, Marathi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size14 MB
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