SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 96
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ : ६१ : उदय : धर्म-दिवाकर का श्री जैन दिवाकर-स्मृति-ग्रन्थ - - प्रभावित होकर अभयदान के पट्टे दिए । २६ सरदारों और प्रजाजनों ने मद्य, मांस, परस्त्री, शिकार आदि के त्याग किए। फिर आप अनेक ग्रामों को पावन करते हए आहिड़ पधारे । उदयपुर नरेश ने घोषणा करा दी कि 'कल मुनिश्री चौथमलजी महाराज पधारेंगे । इसलिए सभी लोग अगता रखें।' इस घोषणा को सुनते ही उदयपुर में नव जागृति का संचार हो गया । आषाढ़ सुदी ६ के दिन आपके स्वागतार्थ हजारों नर-नारी एकत्र होकर महाराजश्री को उत्साह और हर्ष प्रकट करते हुए समारोहपूर्वक नगर में लाए। आषाढ़ सुदी ७ के प्रातःकाल ही आपके सार्वजनिक प्रवचनों का प्रारम्भ हो गया। बनेड़ा राजा साहब की हवेली में सभी जाति और धर्म के लोग प्रवचन सुनते थे। . अंग्रेज अधिकारी के नौकर का सुधार एक दिन एक अंग्रेज अफसर का नौकर शाक-माजी लेने बाजार जा रहा था। हवेली में भीड़ को जाते देखा तो रुक गया। वह भी भीड़ के साथ हवेली में पहुंचा और आपका प्रवचन सुनने में तल्लीन हो गया। उसे प्रवचन में बड़ा आनन्द आया। अब वह प्रतिदिन व्याख्यान सुनने लगा। प्रवचनों का उस पर प्रभाव भी हुआ। उसकी सभी बुरी आदतें छूट गई। अपने नौकर के इस परिवर्तन से वह अँग्रेज अफसर चकित रह गया। उसने इस परिवर्तन का कारण नौकर से पूछा तो नौकर ने बताया "यह सब जैन मुनि श्री चौथमलजी महाराज की वाणी का प्रताप है। आजकल मैं उनका (लेक्चर) प्रवचन रोज सुनता हूँ।" अंग्रेज अफसर का हृदय आपश्री के प्रति कृतज्ञता से भर गया। श्रावण वदी ३ का दिन था। गुरुदेव दशहरे मैदान की तरफ पधार रहे थे। वह अंग्रेज अफसर भी घूमने आया था। कृतज्ञता प्रगट करते हुए बोला "मेरा नौकर पहले बहुत बदमाश था। आपकी प्रीचिग्स (सदुपदेश) को सुनकर बिल्कुल नेक बन गया है । मैं आपका बहुत एहसानमन्द हूँ । थेंक यू सर !" । उस अंग्रेज अफसर का नाम था-सी० जी० चैनेविक्स ट्रेंच, आई० सी० एस०, सेटिलमेण्ट आफीसर तथा रेवेन्यू कमिश्नर । गुरुदेव के वचनों के अद्भुत हितकारी प्रभाव को देखकर सभी जन दंग रह गये। कुछ दिन बाद मि० चैनेविक्स देंच का एक पत्र गुरुदेवश्री की सेवा में आया, जिसमें उन्होंने गुरुदेव की प्रवचन शैली की प्रशंसा करते हुए दीर्घायुष्य की कामना की थी। पत्र इस प्रकार था ___ Udaipur, 12-10-1926 I have heard much good of Chothmalji Maharaj and believe him to be an influence for good lectures wherever he goes. His preachings seem to exercise much impression on young and old. I trust he will long be spared to carry on his beneficient work. (Sd.) C. G. Chenwiks Trench, I.C.S. 1. Settlement Officer and Revenue Commissioner, Mewar. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012021
Book TitleJain Divakar Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKevalmuni
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year1979
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy